SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम प्रज्ञापनापद] गाहा पंचविहा पण्णत्ता। तं जहा—दिली १ वेढला २ मुद्धया ३ पुलगा ४ सीमागारा ५। से तं गाहा । [६५ प्र.] वे (पूर्वोक्त) ग्राह कितने प्रकार के हैं ? [६५ उ.] ग्राह (घड़ियाल) पांच प्रकार के होते हैं? वे इस प्रकार हैं-(१) दिली, (२) वेढल या (वेटल), (३) मूर्धज, (४) पुलक और (५) सीमाकार। यह हुई ग्राह की वक्तव्यता। ६६. से किं तं मगरा ? मगरा दुविहा पण्णत्ता । तं जहा—सोंडमगरा य मट्ठमगरा य । से तं मगरा । [६६ प्र.] वे मगर किस प्रकार के होते हैं ? [६६ उ.] मगर (मगरमच्छ) दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार-शौण्डमगर और मृष्टमगर। यह हुई (पूर्वोक्त) मगर की प्ररूपणा। ६७. से किं तं सुंसुमारा ? सुंसुमारा एगागारा पण्णत्ता। से त्तं सुंसमारा। जे यावऽण्णे तहप्पगारा। [६७ प्र.] वे सुंसुमार (शिशुमार) किस प्रकार के हैं ? [६७ उ.] सुंसुमार (शिशुमार) एक ही आकार-प्रकार के कहे गए हैं। यह हुआ (पूर्वोक्त) सुंसुमार का निरूपण। अन्य जो इस प्रकार के हों। ६८. [१] ते समासतो दुविहा पण्णत्ता। तं जहा–सम्मुच्छिमा य गब्भवक्कंतिया य । [६८-१] वे (उपर्युक्त सभी प्रकार के जलचर तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय) संक्षेप में दो प्रकार के हैं। यथासम्मूछिम और गर्भज (गर्भव्युत्क्रान्तिक)। [२] तत्थ णं जे सम्मुच्छिमा ते सव्वे नपुंसगा। [६८-२] इनमें से जो सम्मूछिम हैं, वे सब नपुंसक होते हैं। [३] तत्थ णं जे ते गब्भवक्कंतिया ते तिविहा पण्णत्ता। तं जहा—इत्थी १ पुरिसा २ नपुंसगा [६८-३] इनमें से जो गर्भज हैं, वे तीन प्रकार के कहे गए हैं-स्त्री, पुरुष और नपुंसक। [४] एतेसि णं एवमाइयाणं जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं अद्धतेरस जाइकुलकोडिजोणिप्पमुहसयसहस्सा भवंतीति मक्खायं। से त्तं जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया। ___ [६८-४] इस प्रकार (मत्स्य) इत्यादि इन (पांचों प्रकार के) पर्याप्तक और अपर्याप्तक जलचरपंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के साढ़े बारह लाख जाति-कुलकोटि-योनिप्रमुख होते हैं, ऐसा कहा है। यह हुई जलचर पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों की प्ररूपणा। ६९. से किं तं थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया ?
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy