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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद] ७९ है - (१) नैरयिक-पंचेन्द्रिय-संसारसमापन्न-जीवप्रज्ञापना, (२) तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-संसारसमापनजीवप्रज्ञापना, (३) मनुष्य-पंचेन्द्रिय संसारसमापन्न-जीवप्रज्ञापना और (४) देव-पंचेन्द्रिय संसारसमापन्न जीवप्रज्ञापना। विवेचन-पंचेन्द्रिय संसारसमापन्न जीवप्रज्ञापना—प्रस्तुत सूत्र (सू. ५९) में नैरयिक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव; इन चतुर्विध पंचेन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों का निरूपण किया गया है। नैरयिकजीवों की प्रज्ञापना ६०. से किं तं नेरइया ? नेरइया सत्तविहा पण्णत्ता। तं जहा–रयणप्पभापुढविनेरइया १ सक्करप्पभापुढविनेरइया २ वालुयप्पभापुढविनेरइया ३ पंकप्पभापुढविनेरइया ४ धूमप्पभापुढविनेरइया ५ तमप्पभापुढविनेरइया ६ तमतमप्पभापुढविनेरइया ७। ते समासतो दुविहा पण्णत्ता। तं जहा—पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। से तं नेरइया। . [६० प्र.] वे (पूर्वोक्त) नैरयिक किस (कितने) प्रकार के हैं? [६० उ.] नैरयिक सात प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिक, (२) शर्कराप्रभापृथ्वी-नैरयिक (३) वालुकाप्रभापृथ्वी-नैरयिक, (४) पंकप्रभापृथ्वी-नैरयिक (५) धूमप्रभापृथ्वी-नैरयिक, (६) तम:प्रभापृथ्वी-नैरयिक और (७) तमस्तमःप्रभापृथ्वी-नैरयिक। वे (उपर्युक्त सातों प्रकार के नैरयिक) संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा-पर्याप्तक और अपर्याप्तक। यह नैरयिकों की प्ररूपणा हुई। विवेचन—नैरयिक जीवों की प्रज्ञापना—प्रस्तुत सूत्र (सू. ६०) में नैरयिक और उसके सात प्रकारों की प्ररूपणा की गई है। 'नैरयिक' शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ—निर् + अय का अर्थ है—जिससे अय अर्थात् इष्टफल देने वाला (शुभ कर्म) निर् अर्थात् निर्गत हो गया हो—निकल गया हो, जहां इष्टफल की प्राप्ति न होती हो, वह निरय अर्थात् नारकावास है। निरय में उत्पन्न होने वाले जीव नैरयिक कहलाते हैं। ये नैरयिक (नारक) जीव संसारसमापन्न अर्थात्-जन्ममरण को प्राप्त हैं तथा पाँचों इन्द्रियों से युक्त होते हैं, अतएव पंचेन्द्रिय-संसारसमापन्न कहलाते हैं। समग्र पंचेन्द्रिय-तिर्यंचयोनिक जीवों की प्रज्ञापना ६१. से किं तं पंचिंदियतिरिक्खजोणिया ? पंचिंदियतिरिक्खजोणिया तिविहा पण्णत्ता। तं जहा—जलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया १ थलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया २ खहयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया ३। १. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ४३
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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