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________________ ७८ [प्रज्ञापना सूत्र किण्हपत्ता नीलपत्ता लोहियपत्ता हलिद्दपत्ता सुक्किलपत्ता चित्तपक्खा विचित्तपक्खा ओभंजलिया जलचारिया गंभीरा णीणिया तंतवा अच्छिरोडा अच्छिवेहा सारंगा णेउला दोला भमरा भरिली जरुला तोट्ठा विच्छता पत्तविच्छ या छाणविच्छु या जलविच्छु या पियंगाला कणगा गोमयकीडगा, जे यावऽण्णे तहप्पगारा। सव्वेते सम्मुच्छिमा नपुंसगा। [५८-१ प्र.] वह (पूर्वोक्त) चतुरिन्द्रिय-संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना किस प्रकार की है ? [५८-१ उ.] चतुरिन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना अनेक प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है-[गाथार्थ] अंधिक, नेत्रिक (या पत्रिक), मक्खी, मगमृगकीट (मशक-मच्छर, कीड़ा अथवा टिड्डी) तथा पतंगा, ढिंकुण (ढंकुण), कुक्कुड (कुर्कुट), कुक्कुह, नन्द्यावर्त और शृंगिरिट (शृंगिरट) ॥ ११०॥ ___ कृष्णपत्र (कृष्णपक्ष), नीलपत्र (नीलपक्ष), लोहितपत्र (लोहितपक्ष), हारिद्रपत्र (हारिद्रपक्ष), शुक्लपत्र (शुक्लपक्ष), चित्रपक्ष, विचित्रपक्ष, अवभांजलिक (ओहांजलिक), जलचारिक, गम्भीर, नीनिक (नीतिक), तन्तव, अक्षिरोट अक्षिवेध, सारंग, नेवल (नूपुर), दोला, भ्रमर, भरिली, जरुला, तोट्ट, बिच्छू, पत्रवृश्चिक, छाणवृश्चिक (गोबर का बिच्छू) जलवृश्चिक, (जल का बिच्छू) प्रियंगाल, कनक और गोमयकीट (गोबर का कीड़ा)। इसी प्रकार के जितने भी अन्य (प्राणी) हैं, (उन्हें भी चतुरिन्द्रिय समझना चाहिए।) ये (पूर्वोक्त) सभी चतुरिन्द्रिय सम्मूर्छिम और नपुंसक हैं। [२] ते समासतो दुविहा पण्णत्ता। तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एतेसि णं एवमाइयाणं चरिंदियाणं पजत्ताऽपज्जत्ताणं णव जातिकुलकोडिजोणिप्पमुहसयसहस्सा भवंतीति मक्खायं। सेत्तं चउरिंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा। __ [५८-२] वे दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा—पर्याप्तक और अपर्याप्तक। इस प्रकार के चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों के नौ लाख जाति-कुलकोटि-योनिप्रमुख होते हैं, ऐसा (तीर्थंकरों ने) कहा है। यह हुई उन चतुरिन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना। __विवेचन–चतुरिन्द्रिय-संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना—प्रस्तुत सूत्र (सू. ५८) में चतुरिन्द्रिय जीवों के अनेक प्रकारों और उनकी जातिकुलकोटि-योनियों की संख्या का निरूपण किया गया है। चतुर्विध पंचेन्द्रिय-संसारसमापन्न-जीवप्रज्ञापना ८९. से किं तं पंचिंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ? पंचिंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा चउव्विहा पण्णत्ता। तं जहा—नेरइयपंचिंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा १ तिरिक्खजोणियपंचिंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा २ मणुस्सपंचिंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ३ देवपंचिंदियसंसारसामावण्णजीवपणवणा ४। [५९ प्र.] वह पंचेन्द्रियं-संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना किस प्रकार की है ? [५९ उ.] पंचेन्द्रिय-संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना चार प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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