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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद] एक-एक जीव वाले ) होते हैं। पुष्प अनेक जीवरूप (होते हैं) और फल बहुत बीजों वालें (हैं)। यह हुआ बहुबीजक (वृक्षों का वर्णन)। (साथ ही) वृक्षों की प्ररूपणा (भी पूर्ण हुई)। ४२. से किं तं गुच्छा? गुच्छा अणेगविहा पण्णत्ता। तं जया वाइंगण सल्लई बोंडई य तह कच्छुरी य जासुमणा। रूवी अढइ नीली तुलसी तह माउलिंगी य॥ १९॥ कत्थंभरि पिप्पलिया अतसी बिल्ली य कायमाई या। चुच्चु पडोला' कंदलि बाउच्चा वत्थुले बदरे॥ २०॥ पत्तउर सीयउरए हवति तहा तवसए य बोधव्वे। णिग्गुंडि अक्क तूवरी अट्टइ चेव तलऊडा॥ २१॥ सण वाण कास महग अग्घाडग साम सिंदुवारे य। करमद्द अद्दरूसग करीर एरावण महित्थे ॥ २२॥ जाउलग माल° परिली गयमारिणि कुच्चकारिया १ भंडी१२। जावइ१३ केयइ तह गंज पाडला दासी अंकोल्ले१४ ॥ २३॥ ये यावऽण्णे तहप्पगारा। से तं गुच्छा ।। [४२ प्र.] वे (पूर्वोक्त)गुच्छ किस प्रकार के होते हैं ? [४२.उ.] गुच्छ अनेक प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं -बैंगन, शल्यकी, बोंडी, (अथवा थुण्डकी) तथा कच्छुरी, जासुमना, रूपी, आढकी, नीली, तुलसी तथा मातुलिंगी॥१९॥ कस्तुम्भरी (धनिया), पिप्पलिका, अलसी, बिल्वी, कायमादिका, चुच्चु (वुच्चु), पटोला, कन्दली, बाउच्चा (विकुर्वी), बस्तुल तथा बादर ॥ २०॥ पत्रपूर, शीतपूरक तथा जवसक, एवं निर्गुण्डी (निल्लु), अर्क (मृगांक), तूवरी (तबरी), अट्टकी (अस्तकी), और तलपुट्टा (तलउडादा) भी समझना चाहिए ॥ २१॥ तथा सण (शण), वाण (पाण), काश (कास), मद्रक (मुद्रक), आघ्रातक, श्याम, सिन्दुवार और करमर्द, आर्द्रडूसक, (अडूसा) करीर (कैर), ऐरावण तथा महित्थ ॥ २२ ॥ जातुलक, मोल, परिली, गजमारिणी, कुर्चकारिका (कुर्व्वकारिका), भंडी (भंड), जावकी (जीवकी), केतकी तथा गंज, पाटला, दासी और अंकोल्ल ॥ २३ ॥ अन्य जो भी इस प्रकार के (इन जैसे) हैं, (वे सब गुच्छ समझने चाहिए)। यह हुआ गुच्छ का वर्णन। पाठान्तर -१. धुंडई। २ कत्थुरी य जीभुमणा। ३ कच्छुभरी ४ वुच्चु । ५ पडोलकंदे। ६ विउव्वा वत्थलंदरे। ७. णिग्गु मियंगं तबरि, अत्थई चेव तलउदाडा। ८. पाण । ९. मुद्दग । १०. मोल । ११. कुव्वकारिया। १२. भंडा। १३. जीवइ । १४. अकोले।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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