SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [प्रज्ञापना सूत्र भी और मधुररस-परिणत भी होते हैं। स्पर्श की अपेक्षा से (वे) कर्कशस्पर्श-परिणत, मृदुस्पर्श परिणत भी, गुरुस्पर्श परिणत भी, लघुस्पर्श-परिणत भी, शीतस्पर्श-परिणत भी, उष्णस्पर्श-परिणत भी, स्निग्धस्पर्शपरिणत भी और रूक्षस्पर्श-परिणत भी होते हैं ॥२०॥ __ [२ [जे संठाणओ वट्टसंठाणपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधतो सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि णिद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि २०। [१३-२] जो संस्थान की अपेक्षा से वृत्तसंस्थानपरिणत होते हैं, वे वर्ण से कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं, नीलवर्ण-परिणत भी, रक्तवर्ण-परिणत भी, पीतवर्ण-परिणत भी, और शुक्लवर्ण परिणत भी। गन्ध की अपेक्षा से (वे) सुगन्धपरिणत भी होते हैं और दुर्गन्धपरिणत भी। (वे) रस की अपेक्षा से तिक्तरस-परिणत भी होते हैं, कटुरस-परिणत भी कषायरस-परिणत भी, अम्लरस-परिणत भी और मधुररसपरिणत भी होते हैं। स्पर्श की अपेक्षा से (वे) कर्कश-स्पर्शपरिणत भी होते हैं, मृदु-स्पर्शपरिणत भी, गुरुस्पर्शपरिणत भी होते हैं, लघुस्पर्श-परिणत भी शीतस्पर्श-परिणत भी और उष्णस्पर्श-परिणत भी होते हैं तथा स्निग्धस्पर्श-परिणत भी होते हैं और रूक्षस्पर्श-परिणत भी ॥२०॥ [३] जे संठाणतो तंससंठाणपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि २०। [१३-३] जो संस्थान की अपेक्षा से व्यस्रसंस्थान-परिणत हैं, वे वर्णतः कृष्णवर्णपरिणत हैं, नीलवर्णपरिणत भी, रक्तवर्णपरिणत भी, पीतवर्णपरिणत भी और शुक्लवर्णपरिणत भी होते हैं। गन्धतः (वे) सुगन्धपरिणत भी होते हैं और दुर्गन्धपरिणत भी। रसतः (वे) तिक्तरसपरिणत भी होते हैं, कटुरसपरिणत भी, कषायरसपरिणत भी, अम्लरसपरिणत भी होते हैं और मधुररसपरिणत भी। स्पर्श की अपेक्षा से (वे) कर्कशस्पर्शपरिणत भी होते हैं, मृदुस्पर्शपरिणत भी, गुरुस्पर्शपरिणत भी लघुस्पर्शपरिणत भी, शीतस्पर्शणित भी और उष्णस्पर्शपरिणत भी तथा स्निग्धस्पर्शपरिणत भी होते हैं और रूक्षस्पर्शपरिणत भी ॥ २०॥ [४] जे संठाणओ चउरंससंठाणपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुब्भिगंध
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy