SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम प्रज्ञापनापद] होते हैं और मधुररस-परिणत भी । स्पर्श की अपेक्षा से (वे) कर्कशस्पर्श-परिणत भी होते हैं, मृदुस्पर्शपरिणत भी, गुरुस्पर्श-परिणत भी, लघुस्पर्श-परिणत भी, शीतस्पर्श- परिणत भी और उष्णस्पर्श-परिणत भी होते है। संस्थान की अपेक्षा से (वे) परिमण्डलसंस्थान-परिणत भी होते हैं, वृत्तसंस्थान-परिणत भी, व्यस्रसंस्थान-परिणत भी, चतुरस्रसंस्थान-परिणत भी और आयतसंस्थान-परिणत भी होते हैं ॥ २३ ॥ [८] जे फासतो लुक्खफासपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसतो तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि, लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि, संठाणतो परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २३। १८४॥ ८॥ [१२-८] जो स्पर्श से रूक्षस्पर्श-परिणत होते हैं, वे वर्ण की अपेक्षा से कृष्णवर्ण-परिणत भी, होते हैं, नीलवर्ण-परिणत भी, रक्तवर्ण-परिणत भी और पीतवर्ण-परिणत भी होते हैं तथा शुक्लवर्णपरिणत भी। गन्ध की अपेक्षा से (वे) सुगन्ध-परिणत भी होते हैं, और दुर्गन्ध-परिणत भी। रस की अपेक्षा से (वे) तिक्तरस परिणत भी होते हैं, कटुरस-परिणत भी, कषायरस-परिणत भी, अम्लरसपरिणत भी और मधुररस-परिणत भी। स्पर्श की अपेक्षा से—(वे) कर्कशस्पर्श-परिणत भी होते हैं, मृदुस्पर्श परिणत भी गुरुस्पर्श परिणत भी, लघुस्पर्श-परिणत भी होते है तथा शीतस्पर्श- परिणत भी होते हैं और उष्णस्पर्शपरिणत भी। संस्थान से—(वे) परिमण्डलसंस्थान-परिणत भी होते हैं, वृत्तसंस्थानपरिणत भी, त्र्यस्रसंथान-परिणत भी होते हैं और चतुरस्रसंस्थानपरिणत भी तथा आयत-संस्थान-परिणत भी होते हैं ॥ २३ । १८४॥ ८॥ १३. [१] जे संठाणतो परिमंडलसंठाणपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधतो सब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसतो तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि णिद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि २०।। ___ [१३-१] जो संस्थान की अपेक्षा से परिमण्डलसंस्थानपरिणत होते हैं, वे वर्ण से कृष्णवर्णपरिणत भी होते हैं नीलवर्ण-परिणत भी होते हैं, रक्तवर्ण-परिणत भी, पीतवर्ण-परिणत भी और शुक्लवर्णपरिणत भी होते हैं। गन्ध की अपेक्षा से (वे) सुगन्ध-परिणत भी होते हैं और दुर्गन्ध- परिणत भी। रस की अपेक्षा से तिक्तरस-परिणत भी होते हैं, कटुरस-परिणत भी, कषायरस-परिणत भी, अम्लरस-परिणत
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy