SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम प्रज्ञापनापद ] १९ परिणत भी, अम्लरस - परिणत भी और मधुररस - परिणत भी होते हैं । (वे) स्पर्श से कर्कश- स्पर्शपरिणत भी होते हैं, मृदुस्पर्श - परिणत भी, गुरुस्पर्श - परिणत भी, लघुस्पर्श- परिणत भी, शीत- स्पर्श - परिणत भी, उष्णस्पर्श - परिणत भी, स्निग्धस्पर्श - परिणत भी और रूक्षस्पर्श- परिणत भी होते हैं । (वे) संस्थान से परिमण्डलसंस्थान - परिणत भी होते हैं, वृत्तसंस्थान - परिणत भी, त्र्यस्र (त्रिकोण) संस्थान परिणत भी, चतुरस्र (चतुष्कोण) संस्थान - परिणत भी और आयतसंस्थान - परिणत भी होते हैं ॥ २० ॥ [३] जे वण्णओ लोहियवण्णपरिणता ते गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठापरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २० । [९-३] जो वर्ण से रक्त वर्ण- परिणत हैं, उनमें से कोई गन्ध से सुगन्धपरिणत होते हैं, कोई दुर्गन्धपरिणत । (वे) रस से तिक्तरस - परिणत भी होते हैं, कटुरस - परिणत भी, कषायरस - परिणत भी, अम्लरस-परिणत भी मधुररस - परिणत भी होते हैं । स्पर्श से वे कर्कशस्पर्श - परिणत भी होते हैं, मृदुस्पर्शपरिणत भी, गुरुस्पर्श- परिणत भी, लघुस्पर्श- परिणत भी, शीतस्पर्श - परिणत भी, उष्णस्पर्श-परिणत भी, स्निग्धस्पर्श - परिणत भी होते हैं और रूक्षस्पर्श - परिणत भी । संस्थान से परिमण्डलसंस्थान - परिणत भी होते हैं, वृत्तसंस्थान - परिणत भी, त्र्यस्त्रसंस्थान - परिणत भी, चतुरस्रसंस्थान - परिणत भी होते हैं और आयतसंस्थान - परिणत भी ॥ २० ॥ [४] जे वण्णओ हालिद्दवण्णपरिणता ते गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररस - परिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफास - परिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठापरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाण-परिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २० । [९-४] जो वर्ण से हारिद्र ( पीत) वर्ण - परिणत होते हैं, उनमें से कोई गन्ध सुगन्ध - परिणत होते हैं, कोई दुर्गन्ध-परिणत भी हो सकते हैं । रस से कोई तिक्तरस - परिणत भी होते हैं, कोई कटुरसपरिणत भी, कोई कषायरस - परिणत भी, कोई अम्लरस - परिणत और मधुररस - परिणत भी होते हैं । स्पर्श से उनमें से कोई कर्कशस्पर्श - परिणत होते हैं, कोई मृदुस्पर्श- परिणत एवं गुरुस्पर्श- परिणत भी, लघुस्पर्श- परिणत भी, शीतस्पर्श परिणत भी, उष्णस्पर्शपरिणत भी, स्निग्धस्पर्श परिणत भी होते हैं और रूक्षस्पर्श - परिणत भी । संस्थान से कोई परिमण्डलसंस्थान - परिणत भी होते हैं, वृत्तसंस्थान - परिणत भी, त्र्यस्रसंस्थान-परिणत भी, चतुरस्रसंस्थान - परिणत भी और आयतसंस्थान - परिणत भी होते हैं ॥ २० ॥
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy