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________________ ३८] [जीवाजीवाभिगमसूत्र भगवन् ! कालोदसमुद्र के प्रदेश पुष्करवरद्वीप से छुए हुए हैं क्या? इत्यादि कथन पूर्ववत् करना चाहिये, यावत् पुष्करवरद्वीप के जीव मरकर कालोद समुद्र में कोई उत्पन्न होते हैं और कोई नहीं। भगवन् ! कालोदसमुद्र, कालोदसमुद्र क्यों कहलाता है ? गौतम! कालोदसमुद्र, का पानी आस्वाद्य है, मांसल (भारी होने से), पेशल (मनोज्ञ स्वाद वाला) है, काला है, उड़द की राशि के वर्ण का है और स्वाभाविक उदकरस वाला है, इसलिए वह कालोद कहलाता है। वहां काल और महाकाल नाम के पल्योपम की स्थिति वाले महर्द्धिक दो देव रहते हैं। इसलिए वह कालोद कहलाता है । गौतम ! दूसरी बात यह है कि कालोदसमुद्र शाश्वत होने से उसका नाम भी शाश्वत और अनिमित्तक है। भगवन् ! कालोसमुद्र में कितने चन्द्र उद्योत करते थे आदि प्रश्न पूर्ववत् जानना चाहिए? गौतम ! कालोदसमुद्र में बयालीस चन्द्र उद्योत करते थे, उद्योत करते हैं और उद्योत करेंगे। गाथा में कहा है कि कालोदधि में बयालीस चन्द्र और बयालीस सूर्य सम्बद्धलेश्या वाले विचरण करते हैं। एक हजार एक सौ छिहत्तर नक्षत्र और तीन हजार छह सौ छियानवे महाग्रह और अट्ठाईस लाख बारह हजार नौ सौ पचास कोडाकोडी तारागण शोभित हुए, शोभित होते हैं और शोभित होंगे। पुष्करवरद्वीप की वक्तव्यता १७६. (अ) कालोयं णं समुदं पुक्खरवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता णं चिट्ठई, तहेव जाव समचक्कवालसंठाणसंठिए नो विसमचक्कवालसंठाणसंठिए। पुक्खरवरे णं भंते ! दीवे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! सोलस जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बाणउई खलु भवे सयसहस्सा। अउणाणउइं अट्ठसया चउणउया य परिरओ पुक्खरवरस्स। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं संपरिक्खित्ते। दोण्हवि वण्णओ। पुक्खरवरस्स णं भंते ! कति दारा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा-विजए, वेजयंते, जयंते, अपराजिए। कहि णं भंते ! पुक्खरवरदीवस्स विजए णामं दारे पण्ण्त्ते ? गोयमा ! पुक्खरवरदीवपुरच्छिमपेरंते पुक्खरोदसमुद्दपुरच्छिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं १. प्रस्तुत पाठ में आई तीन गाथाए वृतिकार के सामने रही हुई प्रतियों में नही थीं, ऐसा लगता है, इसीलिए उन्होंने "अन्यत्राप्युक्तं" ऐसा बृत्ति में लिखकर उक्त तीन गाथाएं उद्धृत की हैं। -सम्पादक
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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