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सर्वजीवाभिगम]
[२१५ साइरेगं। तिरिक्खजोणिणी णं भंते० ? गोयमा! जह० अंतो०, उक्को० वणस्सइकालो। एवं मणुस्सवि मणुस्सीएवि। देवस्सवि देवीएवि। सिद्धस्स णं भंते! ०? साइयस्स अपजवसिए णत्थि अंतरं। ___ एएसिणं भंते! णेरइयाणं तिरिखजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीणं मणूसाणं मणूसीणं देवाणं सिद्धाणं य कयरे० ? गोयमा सव्वत्थोवा मणुस्सीओ, मणूसा असंखेजगुणा, नेरइया असंखेजगुणा, तिरिक्खजोणिणीओ असंखेजगुणाओ, देवा संखेजगुणा, देवीओ संखेजगुणाओ, सिद्धा अणंतगुणा, तिरिक्खजोणिया अणंतगुणा। सेत्तं अट्ठविहा सव्वजीवा पण्णत्ता।
२५५. अथवा सब जीव आठ प्रकार के कहे गये हैं, जैसे कि-नैरियक, तिर्यग्योनिक, तिर्यग्योनिकी, मनुष्य, मनुष्यनी, देव, देवी और सिद्ध। __ भगवन् ! नैरयिक, नैरयिक रूप में कितने काल तक रहता है? गौतम! जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम तक रहता है। तिर्यग्योनिक जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से अनन्तकाल तक रहता है। तिर्यग्योनिकी जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक रहती है। इसी तरह मनुष्य और मानुषी स्त्री के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए। देवों का कथन नैरयिक के समान है। देवी जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कर्ष से पचपन पल्योपम तक रहती है। सिद्ध सादि-अपर्यवसित होने से सदा उस रूप में रहते हैं।
__भगवन् ! इन नैरयिकों, तिर्यग्योनिकों, तिर्यग्योनिनियों, मनुष्यों, मानुषीस्त्रियों, देवों, देवियों और सिद्धों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं?
गौतम! सबसे थोड़ी मानुषीस्त्रियां, उनसे मनुष्य असंख्येयगुण, उनसे नैरयिक असंख्येयगुण, उनसे तिर्यग्योनिक स्त्रियां असंख्यातगुणी, उनसे देव संख्येयगुण, उनसे देवियां संख्येयगुण, उनसे सिद्ध अनन्तगुण, उनसे तिर्यग्योनिक अनन्तगुण हैं।
विवेचन-इनका विवेचन संसारसमापन्नक जीवों की सप्तविध प्रतिपत्ति नामक छठी प्रतिपत्ति में देखना चाहिए। यह अष्टविध सर्वजीवप्रतिपत्ति पूर्ण हुई। सर्वजीव-नवविध-वक्तव्यता
२५६. तत्थ णं जेते एवमाहंसु णवविधा सव्वजीवा पण्णत्ता ते एवमाहंसु तं जहा एगिदिया बेंदिया तेंदिया तउरिदिया णेरइया पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा देवा सिद्धा।
एगिदिए णं भंते! एगिदिएत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। बेंदिए णं भंते! ०? जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं संखेजं कालं। एवं तेइंदिएवि, चउरिदिएवि। णेरइए णं भंते! ०? जहण्णेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। पंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! ०? जह० अंतो०, उक्कोसेणं