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________________ सर्वजीवाभिगम] [२०७ अन्तरद्वार-आभिनिबोधिकज्ञानी का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। परिभ्रष्ट होने के इतने काल के बाद पुनः वह आभिनिबोधिकज्ञानी हो सकता है। उत्कर्ष से अन्तर देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्तकाल है। इसी प्रकार श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी और मन:पर्यायज्ञानी का अन्तर भी जानना चाहिए। केवलज्ञानी का अन्तर नहीं हैं, क्योंकि वह सादि-अपर्यवसित है। __ अनादि-अपर्यवसित अज्ञानी का तथा अनादि-सपर्यवसित अज्ञानी का अन्तर नहीं हैं, क्योंकि अपर्यवसित और अनादि होने से। सादि-सपर्यवसित का जघन्य अन्तर अंतर्मुहूर्त है। क्योंकि इतने काल में वह पुनः ज्ञानी से अज्ञानी हो सकता है। उत्कर्ष से अन्तर साधिक छियासठ सागरोपम है। ___ अल्पबहुत्वद्वार-सबसे थोड़े मनःपर्यायज्ञानी हैं, क्योंकि मन:पर्यायज्ञान केवल विशिष्ट चारित्रवालों को ही होता है। उनसे अवधिज्ञानी असंख्यातगुण हैं, क्योंकि देवों और नारकों को भी अवधिज्ञान होता है। उनसे आभिनिबोधिकज्ञानी और श्रुतज्ञानी दोनों विशेषाधिक हैं तथा ये स्वस्थान में परस्पर तुल्य हैं। उनसे केवलज्ञानी अनन्तगुण हैं, क्योंकि केवलज्ञानी सिद्ध अनन्त हैं। उनसे अज्ञानी अनन्त हैं, क्योंकि अज्ञानी वनस्पतिकायिक जीव सिद्धों से भी अनन्तगुण हैं। ___ अथवा इन्द्रिय और अनिन्द्रिय की विवक्षा से सर्व जीव छह प्रकार के कहे गये हैं-एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रिय। अनिन्द्रिय सिद्ध हैं। इनकी कायस्थिति, अंतर और अल्पबहुत्व पूर्व में कहा जा चुका है। ___ २५१. अहवा छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालियसरीरी वेउव्वियसरीरी आहारगसरीरी तेयगसरीरी कम्मगसरीरी असरोरी। ओरालियसरीरी णं भंते! कालओ केवचिरं होइ? जहन्नेणंखुड्डागं भवग्गहणं दुसमयऊणं उक्कोसेणं असंखिजं कालं जाव अंगुलस्स असंखेजइभागं। वेउव्वियसरीरी जहन्त्रेणं एक्वं समयं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं। आहारगसरीरी जहन्नेणं अंतो० उक्को० अंतोमुहुत्तं । तेयगसरीरी दुविहे पण्णते-अणाइए वा सपजवसिए, अणाइए वा अपजवसिए। एवं कम्मगसरीरीवि। असरीरी साइए-अपज्जवसिए। ____ अंतरं ओरालियसरीरस्स जहन्नेणं एवं समयं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइ। वेउव्वियसरीरस्स जह० अंतो० उक्को० अणंतकालं वणस्सइकालो। आहारगस्स सरीस्स जह० अंतो० उक्को० अणंतकालं जाव अवटुं पोग्गलपरियटें देसूणं। तेयगसरीरस्स कम्मसरीरस्स य दोण्हवि णत्थि अंतरं। अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा आहारगसरीरी, वेउब्वियसरीरी असंखेजगुणा, ओरालियसरीरी असंखेजगुणा, असरीरी अणंतगुणा, तेयाकम्मसरीरी दोवि तुल्ला अणंतगुणा। सेत्तं छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता। १. 'तं संजयस्स सव्वप्पमायरहियस्स विविधरिद्धिमतो' इति वचनात् !
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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