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________________ सर्वजीवाभिगम] [२०५ अण्णाणिणो तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए। तत्थ साइए सपज्जवसिए जहनेणं अंतो० उक्को० अणंतकालं अवड्ढे पुग्गलपरिय देसूणं। अंतरं-आभिणिबोहियणाणिस्स जह० अंतो०, उक्को० अणंतं कालं अवई पुग्गलपरियटै देसूणं। एवं सुयणाणिस्स ओहिणाणिस्स मणपजवणाणिस्स अंतरं। केवलणाणिणो णत्थि अंतरं।अण्णाणिस्स साइयपज्जवसियस्स जह० अंतो०, उक्को० छावहिँ सागरोवमाइं साइरेगाई। __ अप्पाबहु यं-सव्वत्थोवा मणपजवणाणिणो, ओहिणाणिणो असंखेजगुणा, आभिणिबोहियणाणिणो सुयणाणिणो विसेसाहिया सट्ठाणे दोवि तुल्ला, केवलणाणिणो अणंतगुणा, अण्णाणिणो अणंतगुणा। __ अहवा छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-एगिंदिया बेंदिया तेंदिया चउरिंदिया पंचेंदिया अणिंदिया। संचिट्ठणा तहा हेट्ठा। अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चउरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसेसाहिया, अणिंदिया अणंतगुणा, एगिंदिया अणंतगुणा। २५०. जो ऐसा कहते हैं कि सब जीव छह प्रकार के हैं, उनका प्रतिपादन ऐसा हैं-सब जीव छह प्रकार के हैं, यथा-आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्यायज्ञानी, केवल-ज्ञानी और अज्ञानी। भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी के रूप में कितने समय तक लगातार रह सकता है? गौतम! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से साधिक छियासठ सागरोपम तक रह सकता है। इसी प्रकार श्रुतज्ञानी के लिए भी समझना चाहिए। ___ अवधिज्ञानी उसी रूप में कितने समय तक लगातार रह सकता है? गौतम! जघन्य एक समय और उत्कर्ष से साधिक छियासठ सागरोपम तक रह सकता है। - भगवन् ! मनःपर्यायज्ञानी उसी रूप में कितने समय तक रह सकता है? गौतम! जघन्य एक समय और उत्कर्ष से देशोन पर्वकोटि तक रह सकता है। ____ भगवन् ! केवलज्ञानी उसी रूप में कितने समय तक रहता है? गौतम! केवलज्ञानी सादि-अपर्यवसित अज्ञानी तीन तरह के हैं-१. अनादि-अपर्यवसित, २. अनादि-सपर्यवसित और ३. सादि-सपर्यवसित। इनमें जो सादि-सपर्यवसित है, वह जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से अनन्तकाल तक जो देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्त रूप है। आभिनिबोधिकज्ञानी का अन्तर जघन्य अंतर्मुहूर्त और उत्कर्ष से अनन्तकाल, जो देशोन
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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