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________________ सर्वजीवाभिगम] [१७३ गौतम! वह सादि-अपर्यवसित है। भगवन् ! सेन्द्रिय का काल से कितना अन्तर है? गौतम! अनादिअपर्यवसित का अन्तर नहीं है; अनादि-सपर्यवसित का भी अन्तर नहीं है। अनिन्द्रिय का अन्तर कितना है? गौतम! सादि-अपर्यवसित का अन्तर नहीं है? अल्पबहुत्व में अनिन्द्रिय थोड़े हैं और सेन्द्रिय अनन्तगुण हैं, क्योंकि सेन्द्रिय वनस्पतिजीव अनन्त हैं। इसी तरह की वक्तव्यता सकायिक-अकायिक, सयोगी-अयोगी, सलेश्य-अलेश्य और सशरीरअशरीर जीवों के विषय में भी कहनी चाहिए। अर्थात् इनकी संचिट्ठणा (कायस्थिति), अन्तर और अल्पबहुत्व सेन्द्रिय-अनिन्द्रिय की तरह ही है। सवेदक-अवेदक और सकषायिक-अकषाकिय के सम्बन्ध में विशेषता होने से पृथक् निरूपण है। वह इस प्रकार है__सवेदक की कायस्थिति बताते हुए कहा गया है कि सवेदक तीन प्रकार के है-१. अनादिअपर्यवसित २. अनादि-सपर्यवसित और ३. सादि-सपर्यवसित। उनमें अनादि-अपर्यवसित सवेदक या तो अभव्य जीव हैं या तथाविध सामग्री के अभाव से मुक्ति में न जाने वाले जीव हैं। क्योंकि कई भव्य जीव भी सिद्ध नहीं होते। अनादि-सपर्यवसित सवेदक वह भव्य जीव है, जो मुक्तिगामी है और जिसने पहले उपशम श्रेणी प्राप्त नहीं की है। सादि-सपर्यवसित सवेदक वह है जो भव्य मुक्तिगामी है और जिसने पहले उपशम श्रेणी प्राप्त की है। - इनमें उपशमश्रेणी को प्राप्त कर वेदोपशम के उत्तरकाल में अवेदकत्व का अनुभव कर श्रेणी समाप्ति पर भवक्षय से अपान्तराल में मरण होने से अथवा उपशमश्रेणी से गिरने पर पुनः वेदोदय हो जाने से सवेदक हो गया जीव सादि-सपर्यवसित सवेदक है। इस सादि-सपर्यवसित सवेदक की कायस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त है। क्योंकि श्रेणी की समाप्ति पर सवेदक हो जाने के अन्तर्मुहूर्त बाद पुनः श्रेणी पर चढ़कर अवेदक हो सकता है। यहां शंका हो सकती है कि क्या एक जन्म में दो बार उपशम श्रेणी पर चढ़ा जा सकता है? समाधान करते हुए कहा गया है कि दो बाद उपशमश्रेणी हो सकती है, किन्तु एक जन्म में उपशमश्रेणी और क्षपकश्रेणी ये दोनों श्रेणियां नहीं हो सकती है।२ । सादि-सपर्यवसित सवेदक की उत्कृष्ट कायस्थिति अनन्तकाल है। यह अनन्तकाल, कालमार्गणा की अपेक्षा से अनन्त उत्सर्पिणी रूप है तथा क्षेत्रमार्गणा से देशोन अपार्द्धपुद्गलपरावर्त है । इतने काल के बाद पूर्वप्रतिपन्न उपशमश्रेणी वाला जीव आसन्नमुक्ति वाला होकर श्रेणी को प्राप्त कर अवेदक हो सकता अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित की संचिट्ठणा नहीं है। अवेदक के सम्बन्ध में प्रश्न किये जाने पर कहा गया है कि अवेदक दो प्रकार के हैं-सादि १. "भव्वाणि ण सिझंति कई।' इति वचनात्। २. तथा चाह मूलटीकाकार:--"'नैकस्मिन् जन्मनि उपशमश्रेणी: क्षपक श्रेणिश्च जायते, उपशमश्रेणिद्वयं तु भवत्येव।'
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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