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________________ दशविधाख्या नवम प्रतिपत्ति] [१६७ अनन्तकाल का अन्तर है। यह अनन्तकाल पूर्ववत् अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों का होता है आदि कथन करना चाहिए। द्वीन्द्रियभव से निकल कर इतने काल तक वनस्पति में रहकर पुनः द्वीन्द्रिय रूप में उत्पन्न होने से प्रथमसमय बीत जाने के पश्चात् यह अन्तर प्राप्त होता है। इसी तरह अप्रथमसमय त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय का जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर समझना चाहिए। अल्पबहुत्वद्वार-पहला अल्पबहुत्व प्रथमसमयिकों को लेकर कहा गया है। वह इस प्रकार है सबसे थोड़े प्रथमसमयपंचेन्द्रिय हैं, क्योंकि वे एक समय में थोड़े ही उत्पन्न होते हैं। उनसे प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे एकसमय में प्रभूत उत्पन्न होते हैं। उनसे प्रथमसमयत्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे एकसमय में प्रभूततर उत्पन्न होते हैं। उनसे प्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे एक समय में में प्रभूततम उत्पन्न होते हैं। उनसे प्रथमसमयएकेन्द्रिय विशेषाधिक हैं। यहां जो द्वीन्द्रियादि से निकलकर एकेन्द्रिय रूप में उत्पन्न होते हैं और प्रथमसमय में वर्तमान हैं वे ही प्रथमसमयएकेन्द्रिय जानना चाहिए, अन्य नहीं। वे प्रथमसमयद्वीन्द्रियों से विशेषाधिक ही हैं, असंख्येय या अनन्तगुण नहीं। दूसरा अल्पबहुत्व अप्रथमसमयिकों का लेकर कहा गया है। वह इस प्रकार है. सबसे थोड़े अप्रथमसमयपंचेन्द्रिय, उनसे अप्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयत्रीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयएकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं। तीसरा अल्पबहुत्व प्रत्येक एकेन्द्रियादि में प्रथमसमय वालों और अप्रथमसमय वालों की अपेक्षा से है। वह इस प्रकार है--सबसे थोड़े प्रथमसमयएकेन्द्रिय हैं, क्योंकि द्वीन्द्रियादि से आकर एक समय में थोड़े ही उत्पन्न होते है। उनसे अप्रथमसमयएकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं, क्योंकि वनस्पतिकाल अनन्त है। द्वीन्द्रियों में सबसे थोड़े प्रथमसमयद्वीन्द्रिय है, उनसे अप्रथमसमयद्वीन्द्रिय अंख्येयगुण हैं, क्योंकि द्वीन्द्रिय सब संख्या से भी असंख्यात ही हैं। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, और पंचेन्द्रियों में भी प्रथमसमय वाले कम हैं और अप्रथमसमय वाले असंख्यातगुण हैं। चौथा अल्पबहुत्व उक्त दस भेदों की अपेक्षा से कहा गया है। वह इस प्रकार है सबसे थोड़े प्रथमसमयपंचेन्द्रिय, उनसे प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथमसमयत्रीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे प्रथमसमयएकेन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयपंचेन्द्रिय असंख्ये यगुण, उनसे अप्रथमसमयचतुरिन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयत्रीन्द्रिय विशेषाधिक. उनसे अप्रथमसमयद्वीन्द्रिय विशेषाधिक, उनसे अप्रथमसमयएकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं। ___ युक्ति स्पष्ट ही है। इस प्रकार दसविधि प्रतिपत्ति पूर्ण हुई। उसके पूर्ण होने से संसारसमापन्नक जीवाभिगम भी पूर्ण हुआ।
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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