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________________ १६४] [जीवाजीवाभिगमसूत्र एक समय है। अप्रथमसमयएकेन्द्रिय की जघन्य एक समय कम क्षुल्लक-भवग्रहण और उत्कर्ष से भी एक समय कम बावीस हजार वर्ष । इस प्रकार सब प्रथमसमयिकों की जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से भी एक समय की स्थिति कहनी चाहिए। अप्रथमसमय वालों की स्थिति जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभव और उत्कर्ष से जिसकी जो स्थिति कही गई है, उसमें एक समय कम करके कथन करना चाहिए यावत् पंचेन्द्रिय की एकसमय कम तेतीस सागरोपम की स्थिति है। __ प्रथमसमयवालों की संचिट्ठणा (कायस्थिति) जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से भी एक समय है। अप्रथमसमयवालों की जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कर्ष से एकेन्द्रियों की वनस्पतिकाल और द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रियों की संखेयकाल एवं पंचेन्द्रियों की साधिक हजार सागरोपम पर्यन्त संचिट्ठणा (कार्यस्थिति) है। २३०. पढमसमयएगिंदियाणं के वइयं अंतरं होइ? गोयमा! जहण्णणं दो खुड्डागभवग्गहणाइं समय-ऊणाई, उक्कोसेणं वणस्सइकालो।अपढमसमयएगिंदियाणं अंतर जह ण्णणं खुड्डागभवग्गहणं समयाहि यं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेजवासमब्भहियाइं। सेसाणं सव्वेसिं पढमसमयिकाणं अंतरं जहण्णेणं खुड्डाई भवग्गहणाई समय-ऊणाइं, उक्कोसेणं वसणस्सइकालो। अपढमसमयिकाणं सेसाणं जहण्णेणं खड्डागं भवग्गहणं समयाहियं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। पढमसमयाणं सव्वेसिं सव्वत्थोवा पढमसमयपंचेंदिया, पढमसमयचउरिंदिया । विसेसाहिया, पढमसमयतेइंदिया विसेसाहिसा, पढमसमयबेइंदिया विसेसाहिया, पढमसमयऐगिंदिया विसेसाहिया। एवं अपढमसमयिकावि णवरिं अपढमसमयएगिंदिया अणंतगुणा। दोण्हं अप्पबहुयं-सव्वत्थोवा पढमसमयएगिंदिया, अपढमसमयएगिंदियाणं अणंतगुणा। सेसाणं सव्वत्थोवा पढमसमयिका, अपढमसमयिका असंखेजगुणा। एएसि गं भंते! पढमसमयएगिंदियाणं अपढमसमयएगिंदियाणं जाव अपढमसमयपंचिंदियाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा, बहुआ वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा पढमसमयपंचिंदिया, पढमसमयचउरिंदिया विसेसाहिया, पढमसमयतेइंदिया विसेसाहिया एवं हेट्ठामुहा जाव पढमसमयएगिंदिया विसेसाहिया, अपढमसमयपंचिदिंया असंखेजगुणा, अपढमसमयचउरिंदिया विसेसाहिया जाव अपढमसमयएगिंदिया अणंतगुणा। सेत्तं दसविहा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता। सेत्तं संसारसमावण्णगजीवाभिगमे।
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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