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________________ १५८] [जीवाजीवाभिगमसूत्र सबसे थोड़े प्रथमसमयनैरयिक, उनसे अप्रथमसमयनैरयिक असंख्येयगुण हैं। इसी प्रकार तिर्यक्योनिक, मनुष्य और देवों के प्रथमसमय और अप्रथमसमयों का अल्पबहुत्व कहना चाहिए। भगवन्! प्रथमसमयनैरयिकों यावत् अप्रथमसमयदेवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है? गौतम! सबसे थोड़े प्रथमसमयमनुष्य, उनसे अप्रथमसमयमनुष्य असंख्येयगुण, उनसे प्रथमसमयनैरयिक असंख्येयगुण, उनसे प्रथमसमयदेव असंख्येयगुण, उनसे प्रथमसमयतिर्यक् योनिक असंख्येयगुण, उनसे अप्रथमसमयदेव असंख्येयगुण, उनसे अप्रथमसमय तिर्यक्योनिक अनन्तगुण। इस प्रकार आठ तरह के संसारसमापन्नक जीवों का वर्णन हुआ। अष्टविधप्रतिपत्ति नामक सातवीं प्रतिपत्ति पूर्ण हुई। विवेचन-इस सप्तमप्रतिपत्ति में आठ प्रकार के संसारसमापन्नक जीवों का कथन है। नारक, तिर्यग्योनिक, मनुष्य और देव-इन चार के प्रथमसमय और अप्रथमसमय के रूप में दो-दो भेद किये गये, इस प्रकार आठ भेदों में सम्पूर्ण संसारसमापन्नक जीवों का समावेश किया है। __जो अपने जन्म के प्रथमसमय में वर्तमान हैं, वे प्रथमसमयनारक आदि हैं। प्रथमसमय को छोड़कर शेष सब समयों में जो वर्तमान हैं, वे अप्रथमसमयनारक आदि हैं। इन आठों भेदों को लेकर स्थिति, संचिट्ठणा, अन्तर और अल्पबहुत्व का विचार किया गया है। प्रथमसमयनैरयिक की जघन्य और उत्कृष्ट भवस्थिति एक समय की है, क्योंकि द्वितीय आदि समयों में वह प्रथमसमय वाला रहता। अप्रथमसमयनैरयिक की जघन्यस्थिति एक समय कम दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एकसमय कम तेतीस सागरोपम की है। तिर्यग्योनिकों में प्रथमसमय वालों की जघन्य उत्कर्ष स्थिति एक समय की औरअप्रथमसमय वालों की जघन्य स्थिति एक समय कम क्षुल्लकभव और उत्कर्ष से एकसमय कम तीन पल्योपम है। इसी प्रकार मनुष्यों के विषय में तिर्यंचों के समान और देवों के सम्बन्ध में नारकों के समान भवस्थिति जाननी चाहिए। संचिट्ठणा-देवों और नारकों की जो भवस्थिति है, वही उनकी कायस्थिति (संचिट्ठणा) है, क्योंकि देव और नारक मरकर पुनः देव और नारक नहीं होते। प्रथमसमयतिर्यग्योनिकों की जघन्य संचिट्ठणा एकसमय की है और उत्कृष्ट से भी एक समय की है। क्योंकि तदनन्तर वह प्रथमसमय विशेषण वाला नहीं रहता। अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक की जघन्य संचिट्ठणा एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण है, क्योंकि प्रथमसमय में वह अप्रथमसमय विशेषण वाला नहीं है, अतः वह प्रथमसमय कम करके कहा गया है। उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल अर्थात् अनन्तकाल कहना चाहिए, जिसका स्पष्टीकरण पूर्व में कालमार्गणा और क्षेत्रमार्गणा से किया गया है। __ प्रथमसमयमनुष्यों की जघन्य, उत्कृष्ट संचिट्ठणा एकसमय की है और अप्रथमसमयमनुष्यों की जघन्य एकसमय कम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कृष्ट से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम में एक
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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