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________________ प्रकाशकीय आगमप्रेमी जैनदर्शन के अध्येताओं के समक्ष जिनागम ग्रन्थमाला के ३१वें अंक के रूप में जीवाजीवाभिगमसूत्र का द्वितीय भाग प्रस्तुत किया जा रहा है । जीवाजीवाभिगमसूत्र में मुख्य रूप से जीव का विभिन्न स्थितियों की अपेक्षा विशद वर्णन किया गया है। जो संक्षेप में जीव की अनेकानेक अवस्थाओं का दिग्दर्शन कराने के साथ तत्सम्बन्धी सभी जिज्ञासाओं का समाधान करता है । साधारण पाठकों के लिए तो विस्तृत बोध कराने का साधन है। प्रस्तुत संस्करण में निर्धारित रूपरेखा के अनुसार मूल पाठ के साथ हिन्दी में उसका अर्थ तथा स्पष्टीकरण के लिए आवश्यक विवेचन है। इसी कारण ग्रन्थ का अधिक विस्तार हो जाने से दो भागों में प्रकाशित किया गया है। प्रथम भाग पूर्व में प्रकाशित हो गया और यह द्वितीय भाग है। ग्रन्थ का अनुवाद, विवेचन, संपादन उप-प्रवर्तक श्री राजेन्द्रमुनि जी म. एम. ए., पी-एच.डी. ने किया है। उत्तराध्ययनसूत्र का संपादन आदि आपने ही किया था। एतदर्थ समिति आपको अपना वरिष्ठ सहयोगी मानती हुई हार्दिक अभिनन्दन करती है। समग्र आगमसाहित्य को जनभोग्य बनाने के लिए जिन महामना युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी "मधुकर" मुनिजी म. सा. ने पवित्र अनुष्ठान प्रारम्भ किया था, अब उनका प्रत्यक्ष सान्निध्य तो नहीं रहा, यह परिताप का विषय है, किन्तु आपश्री के परोक्ष आशीर्वाद सदैव समिति को प्राप्त होते हैं। यही कारण है कि समिति अपने कार्य में प्रगति करती रही और अब हम विश्वास के साथ यह स्पष्ट करने में समक्ष हैं कि आगम बत्तीसी का प्रकाशन कार्य प्रायः पूर्ण हो चुका है। अन्त में हम अपने सभी सहयोगियों के कृतज्ञ हैं कि उनकी लगन, प्रेरणा से प्रकाशन का कार्य सम्पन्न होने जा रहा है। रतनचन्द मोदी कार्यवाहक अध्यक्ष ज्ञानचन्द विनायकिया मंत्री श्री आगमप्रकाशन समिति, ब्यावर (राज.)
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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