SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम प्रतिपत्ति: पृथ्वीकाय का वर्णन ] [४७ सण्ह बायरपुढविकाइया सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा-कण्हमत्तिया, भेदो जहा पण्णवणाए जाव ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तेसिंणं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा! तओसरीरगा, पण्णत्ता,तं जहा-ओरालिए, तेयए, कम्मए।तंचेव सव्वं नवरं चत्तारि लेसाओ अवसेसं जहा सुहमपुढविक्काइयाणं आहारो जाव णियमा छहिसिं। उववाओ तिरिक्खजोणिय मणुस्स देवेहिंतो, देवेहिं जाव सोहम्मेसाणेहिंतो। ठिई जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई। ते णं भंते ! जीवा मारणंतियसमुग्घाएणं किं समोहया मरंति असमोहया मरंति ? गोयमा ! समोहया वि मरंति असमोहया वि मरंति। ते णं भंते ! जीवा अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति, कहिं उवजंति ? किं नेरइएसु उववजंति ? पुच्छा। नो नेरइएसु उववजंति, तिरिक्खजोणिएसु उववजंति, मणुस्सेसु उववजंति, नो देवेसु उववजंति, तं चेव जाव असंखेजवासा उववजेहिं। ते णं भंते ! जीवा कतिगतिया कतिआगतिया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुगतिया, तिआगतिया परित्ता असंज्जा य समणाउसो ! से तं बायरपुढविक्काइया। से तं पुढविक्काइया। [१५] श्लक्षण (मृदु) बादर पृथ्वीकाय क्या हैं ? श्लक्षण बादर पृथ्वीकाय सात प्रकार के कहे गये हैं-काली मिट्टी आदि भेद प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार जानने चाहिए यावत् वे संक्षेप से दो प्रकार के कहे गये हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त। हे भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ? गौतम ! तीन शरीर कहे गये हैं जैसे कि औदारिक, तैजस और कार्मण। इस प्रकार सब कथन पूर्ववत् जानना चाहिए। विशेषता यह है कि इनके चार लेश्याएँ होती हैं। शेष वक्तव्यता सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों की तरह जानना चाहिए यावत् नियम से छहों दिशा का आहार ग्रहण करते हैं। ये बादर पृथ्वीकायिक जीव तिर्यंच, मनुष्यों और देवों से आकर उत्पन्न होते हैं। देवों से आते हैं तो सौधर्म और ईशान (पहले दूसरे) देवलोक से आते हैं। इनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष की है। हे भगवन्! ये जीव मारणांतिकसमुद्घात से समवहत होकर मरते हैं या असमवहत होकर मरते हैं ? गौतम ! समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी मरते हैं। भगवन् ! ये जीव वहाँ से मर कर कहाँ जाते हैं ? कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या नारकों में उत्पन्न होते हैं आदि प्रश्न करने चाहिए ? गौतम ! ये नारकों में उत्पन्न नहीं होते हैं, तिर्यंञ्चों में उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, देवों
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy