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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
सरीरोगाहण संघयण संठाण कसाय तह य हुँति सन्नाओ। लेसिदिय समुग्याए सनी वेए य पजत्ती ॥१॥ दिट्ठी दंसण नाणे जोगुवओगे तहा किमाहारे।
उववाय ठिई समुग्धाय चवण गइरागई चेव ॥२॥ इसके आगे सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों का २३ द्वारों द्वारा निरूपण किया जायेगा। वे तेवीस द्वार इस प्रकार हैं
१. शरीर, २. अवगाहना, ३. संहनन, ४. संस्थान, ५. कषाय, ६. संज्ञा, ७. लेश्या, ८. इन्द्रिय, ९. समुद्घात, १०. संज्ञी-असंज्ञी, ११. वेद, १२.पर्याप्ति, १३. दृष्टि, १४. दर्शन, १५. ज्ञान, १६. योग, १७. उपयोग, १८. आहार, १९. उपपात, २०. स्थिति, २१. समवहत-असमवहत मरण, २२. च्यवन और २३. गति-आगति।
आगे के सूत्रों में क्रमशः इन २३ द्वारों को लेकर प्रश्रोत्तर किये गये हैं। 'यथोद्देशः तथा निर्देशः' के अनुसार प्रथम क्रमशः शरीर आदि द्वारों का कथन किया जाता है
१३. [१] तेसिं णं भंते ! जीवाणं कति सरीरया पण्णता? गोयमा ! तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए, तेयए, कम्मए। [१] हे भगवन् ! उन सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ? गौतम! तीन शरीर कहे गये हैं, जैसे कि १. औदारिक २. तैजस और ३. कार्मण। [२] तेसिंणं भंते ! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? । गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलासंखेज्जइभागं उक्कोसेणवि अंगुलासंखेज्जइभागं। [२] भगवन् ! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी कही गई है ? गौतम! जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट से भी अंगुल का असंख्यातवां भाग प्रमाण है। [३] तेसिं णं भंते ! जीवाणं सरीरा किंसंघयणा पण्णत्ता ? गोयमा ! छेवट्टसंघयणा पण्णत्ता। [३] भगवन् ! उन जीवों के शरीर किस संहनन वाले कहे गये हैं ? गौतम ! सेवार्तसंहनन वाले कहे गये हैं। [४] तेसिंणं भंते ! जीवाणं सरीरा किंसंठिया पण्णत्ता? गोयमा ! मसूरचंदसंठिया पण्णत्ता। [४] भगवन् ! उन जीवों के शरीर का संस्थान क्या है ? गौतम ! चन्द्राकार मसूर की दाल के समान है। [५] तेसिं णं भंते ! जीवाणं कति कसाया पण्णत्ता ? गोयमा !चत्तारिकसाया पण्णत्ता,तंजहा-कोहकसाए,माणकसाए,मायाकसाए,लोहकसाए।