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प्रकाशकीय
श्री जिनागम ग्रंथमाला के तीसवें ग्रन्थांक जीवाजीवाभिगम सूत्र (प्रथम खण्ड) का यह तृतीय संस्करण आगम पाठी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए आनन्द का अनुभद हो रहा है। साथ ही गौरव की अनुभूति हो रही है कि समिति आगम साहित्य के प्रचार प्रसार करने में सफल हुई है।
___ व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र और प्रज्ञापना सूत्र के समान ही यह जीवाजीवाभिगम सूत्र भी जैन दर्शन के सैद्धान्तिक पक्ष की विशद् व्याख्या करता है और उसमें भी जीवतत्त्व के प्रत्येक पक्ष का वर्णन किया गया है। जिन्हें सैद्धान्तिक दृष्टि से जीवतत्त्व का सर्वांगीण वर्णन समझना है उन्हें इस आगम का अध्ययन करना अनिवार्य, आवश्यक है।
उपर्युक्त संकेत से यह स्पष्ट हो गया है कि जीवाजीवाभिगम सूत्र तत्त्व विवेचक आगम ग्रन्थ है। तात्विक होने से इसके अनुवाद में सैद्धान्तिक पक्ष को स्पष्ट करने के लिए विस्तृत व्याख्या की आवश्यकता है।ऐसा किये बिना जिजास पाठकों को पर्णरूपेण सन्तोष नहीं हो सकता है। इस बात को ध्यान में रखकर अनुवादक विवेचक विद्वान मुनि श्री ने वर्ण्य विषय से संबंधित ग्रन्थान्तरों का सहयोग लेकर विषय इतना सुगम बना दिया कि पाठकों को अपनी प्रत्येक जिज्ञासा का उत्तर प्राप्त होता है।
विवेचन के विस्तार से सूत्र के हार्द को समझने में पाठकों को सुविधा हो गयी लेकिन पृष्ठ संख्या की वृद्धि होते जाने से समस्त ग्रन्थ को एक ही जिल्द में समायोजित करना संभव नहीं हो सका इसलिए शेष भाग द्वितीय खण्ड में प्रकाशित किया गया है।
विज्ञ मुनिश्री ने अपनी योग्यता को पूर्ण रूपेण नियोजित कर ग्रन्थ को सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित कर दिया है, एतदर्थ हम मुनिश्री जी का हार्दिक अभिनन्दन करते है और अपेक्षा है कि अपनी विद्वत्ता का उपयोग सरस्वती भण्डार की श्रीवृद्धि के लिए नियोजित करेंगे।
अन्त में हम स्व. युवाचार्य श्री मधुकरमुनिजी म. सा. को श्रद्धांजलि समर्पित करते हैं कि जिनके द्वारा बोया गया बीज दिनानुदिन वृद्धिंगत होता हुआ विशाल वटवृक्ष के रूप में प्रवर्धमान है और हमें अपना योग देने का सुअवसर प्राप्त हुआ।
जिन-जिन महानुभावों का इस महान कार्य में सहयोग प्राप्त हुआ और हो रहा है उन सभी का आभार मानते है।
सागरमल बैताला
अध्यक्ष
रतनचन्द मोदी कार्याध्यक्ष
सायरमल चोरडिया
महामन्त्री
ज्ञानचन्द विनायकिया
मन्त्री
श्री आगम-प्रकाशन समिति, ब्यावर (राजस्थान)