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________________ ४३६ ] [जीवाजीवाभिगमसूत्र पण्णत्ते; उत्तरदक्खिणायए पाईणपडीणविच्छिन्ने एगंजोयणसहस्सं आयामेणं पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं दस जोयणाइं उव्वेहेणं अच्छे सण्हे रययामयकूले चउक्कोणे समतीरे जाव पडिरूवे। उभओ पासिंदोहिंय पउमवरवेइयाहिं वणसंडेहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हविवण्णओ। नीलवंतदहस्सणं दहस्स तत्थ तत्थ जाव बहवे तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता, वण्णओ भाणियव्यो जाव तोरण त्ति। तस्सणं नीलवंतदहस्सणंदहस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थणंएगे महं पउमे पण्णत्ते, जोयणं आयाम-विक्खंभेणंतं तिगुणंसविसेसं परिक्खेवेणंअद्धजोयणं बाहल्लेणं दस जोयणाई उव्वेहेणं दो कोसे ऊसिए जलंताओ, साइरेगाइं दसद्धजोयणाइं सव्वग्गेणं पण्णत्ते। तस्स णं पउमस्स अयमेयारूवेवण्णावासे पण्णत्ते,तं जहा-वइरामया मूला, रिट्ठामए कंदे, वेरुलियामए नाले वेरुलियमया बाहिरपत्ताजंबूणयमयाअब्भिंतरपत्ता तवणिज्जमया केसरा कणगामई कणिया नानामणिमया पुक्खरस्थिभुया। साणं कणिया अद्धजोयणं आयामविक्खंभेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं कोसं बाहल्लेणं सव्वप्पणा कणगमई अच्छा सण्हा जाव पडिरूवा। तीसे णं कण्णियाए उवरिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव मणिहिं०।तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थणंएगे महं भवणे पण्णत्ते, कोसं आयामेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं देसूणं कोसं उड्डेउच्चत्तेणं अणेगखंभसयसन्निविटुं जाव वण्णओ। तस्सणं भवणस्स तिदिसिंतओ दारा पण्णत्ता पुरथिमेणंदाहिणेणं उत्तरेणं।ते णं दारा पंचधणुसयाइं उ8उच्चत्तेणंअड्डाइज्जाइंधणुसयाई विक्खंभेणं तावइयंचेव पवेसेणं सेया वरकणगथूभियागा जाव वणमालाओ त्ति। [१४९] (१) भगवन् ! उत्तरकुरु नामक क्षेत्र में नीलवंतद्रह नाम का द्रह कहाँ कहा गया है? गौतम ! यमक पर्वतों के दक्षिण में आठ सौ चौतीस और / योजन आगे जाने पर सीता महानदी के ठीक मध्य में उत्तरकुरु-क्षेत्र का नीलवंतद्रह नाम का द्रह कहा गया है। यह उत्तर से दक्षिण तक लम्बा और पूर्व-पश्चिम में चौड़ा है। एक हजार योजन इसकी लम्बाई और पांच सौ योजन की चौड़ाई है। यह दस योजन ऊँचा (गहरा) है, स्वच्छ है, श्लक्ष्ण है, रजतमय इसके किनारे हैं, यह चतुष्कोण और समतीर है यावत् प्रतिरूप है। यह दोनों ओर से पद्मवरवेदिकाओं और वनखण्डों से चौतरफा घिरा हुआ है। दोनों का वर्णनक यहाँ कहना चाहिए। नीलवंत नामक द्रह में यहाँ वहाँ बहुत से त्रिसोपानप्रतिरूपक कहे गये हैं। उनका वर्णनक तोरण पर्यन्त कहना चाहिए। उन नीलवंत नामक द्रह के मध्यभाग में एक बड़ा कमल कहा गया है। वह कमल एक योजन का लम्बा और एक योजन का चौड़ा है। उसकी परिधि इससे तिगुनी से कुछ अधिक है। इसकी मोटाई
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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