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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
वह सैकड़ों खंभों पर स्थित है, दर्शकों की नजरों में चढ़ी हुई (मनोहर) और भलीभांति बनाई हुई उसकी वज्रवेदिका है, श्रेष्ठ तोरण पर रति पैदा करने वाली शालभंजिकायें (पुत्तलिकायें) लगी हुई हैं, सुसंबद्ध, प्रधान और मनोज्ञ आकृति वाले प्रशस्त वैडूर्यरत्न के निर्मल उसके स्तम्भ हैं, उसका भूमिभाग नाना प्रकार के मणि, कनक और रत्नों से खचित है, निर्मल है, समतल है, सुविभक्त, निबिड और रमणीय है। ईहामृग, बैल, घोड़ा मनुष्य, मगर, पक्षी, सर्प, किन्नर, रुरु (मृग), सरभ (अष्टापद), चमर, हाथी, वनलता, पद्मलता आदि के चित्र उस सभा में बने हुए हैं, अतएव वह बहुत आकर्षक है। उसके स्तम्भों पर वज्र की वेदिका बनी हुई होने से वह बहुत सुन्दर लगती है। समश्रेणी के विद्याधरों के युगलों के यंत्रों (शक्तिविशेष) के प्रभाव से यह सभा हजारों किरणों से प्रभासित हो रही है। यह हजारों रूपकों से युक्त है, दीप्यमान है, विशेष दीप्यमान हैं, देखने वालों के नेत्र उसी पर टिक जाते हैं, उसका स्पर्श बहुत ही शुभ और सुखद है, वह बहुत ही शोभायुक्त है। उसके स्तूप का अग्रभाग (शिखर) सोने से. मणियों से और रत्नों से बना हआ है. उसके शिखर का अग्रभाग नाना प्रकार के पांच वर्णों की घंटाओं और पताकाओं से परिमंडित है, वह सभा श्वेतवर्ण की है, वह किरणों के समूह को छोड़ती हुई प्रतीत होती है, वह लिपी हुई और पुती हुई है, गोशीर्ष चन्दन और सरस लाल चन्दन से बड़े बड़े हाथ के छापे लगाये हुए हैं, उसमें चन्दनकलश अथवा वन्दन (मंगल) कलश स्थापित किये हुए हैं, उसके द्वारभाग पर चन्दन के कलशों से तोरण सुशोभित किये गये हैं, ऊपर से लेकर नीचे तक विस्तृत, गोलाकार और लटकती हुई पुष्पमालाओं से वह युक्त है, पांच वर्ण के सरस-सुगंधित फूलों के पुंज से वह सुशोभित है, काला अगर, श्रेष्ठ कुन्दुरुक (गन्धद्रव्य) और तुरुष्क (लोभान) के धूप की गंध से वह महक रही है, श्रेष्ठ सुगंधित द्रव्यों की गंध से वह सुगन्धित है, सुगन्ध की गुटिका के समान सुगन्ध फैला रही है। वह सुधर्मा सभा अप्सराओं के समुदायों से व्याप्त है, दिव्यवाद्यों के शब्दों से वह निनादित हो रही है-गूंज रही है। वह सुरम्य है, सर्वरत्नमयी है, स्वच्छ है, यावत् प्रतिरूप है। ___१३७. (२) तीसे णं सुहम्माए सभाए तिदिसिं तओ दारा पण्णत्ता । ते णं दारा पत्तेयं पत्तेयं दो दो जोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं एगं जोयणं विक्खंभेणं तावइयं चेव पवेसेणं सेया वरकणगथूभियागा जाव वणमाला-दार-वण्णओ। तेसिंणंदाराणं पुरओ मुहमंडवा पण्णत्ता। तेणंमुहमंडवा अद्धतेरस जोयणाई आयामेणं छ जोयणाई सक्कोसाइं विक्खंभेणं साइरेगाइं दो जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं अणेगखंभसयसन्निविट्ठा जाव उल्लोया भूमिभागवण्णओ। तेसिंणं मुहमंडवाणं उपरिपत्तेयंपत्तेयं अट्ठमंगलगापण्णत्ता सोत्थियजावदप्पणा ।तेसिंणंमुहमंडवाणं पुरओ पत्तेयं पत्तेयं पेच्छाघरमंडवा पण्णत्ता; ते णं पेच्छाघरमंडवा अद्धतेरसजोयणाई आयामेणं जाव दो जोयणाई उड्ढें उच्चत्तेणं जाव मणिफासो।
तेसिंणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं वइरामयअक्खाडगा पण्णत्ता।तेसिंणं वइरामयाणं अक्खाडगाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं पत्तेयं मणिपीढिया पण्णत्ता। ताओ णं मणिपीढियाओ जोयणमेगंआयाम-विक्खंभेणंअद्धजोयण बाहल्लेणंसव्वमणिमईओ अच्छाओजाव पडिरूवाओ
१. मच्छ०।