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________________ ३८२ ] [जीवाजीवाभिगमसूत्र तं जहा - पुरत्थिमेणं चत्तारि साहस्सीओ एवं चउसुवि जाव उत्तरेणं चत्तारि साहस्सीओ। अवसेसेसु भोमेसु पत्तेयं पत्तेयं भहासणा पण्णत्ता । [१३२] उस विजयद्वार पर एक सौ आठ चक्र से अंकित ध्वजाएँ, एक सौ आठ मृग से अंकित ध्वजाएँ, एक सौ आठ गरुड से अंकित ध्वजाएँ, (एक सौ आठ वृक ' ( भेडिया) से अंकित ध्वजाएँ), एक सौ आठ रुरु (मृगविशेष ) से अंकित ध्वजाएँ, एक सौ आठ छत्रांकित ध्वजाएँ, एक सौ आठ पिच्छ से अंकित ध्वजाएँ, एक सौ आठ शकुनिं (पक्षी) से अंकित ध्वजाएँ, एक सौ आठ सिंह से अंकित ध्वजाएँ, एक सौ आठ वृषभ से अंकित ध्वजाएँ और एक सौ आठ सफेद चार दांत वाले हाथी से अंकित ध्वजाएँ,इस प्रकार आगे-पीछे सब मिलाकर एक हजार अस्सी ध्वजाएँ विजयद्वार पर कही गई हैं। (ऐसा मैने और अन्य तीर्थकरों ने कहा है ।) उस विजयद्वार के आगे नौ भौम (विशिष्टस्थान) कहे गये हैं। उन भौमों के अन्दर एकदम समतल और रमणीय भूमिभाग कहे गये हैं, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् यावत् मणियों के स्पर्श तक जानना चाहिए। उन भौमों की भीतरी छत पर पद्मलता यावत् श्यामलताओं के विविध चित्र बने हुए हैं, यावत् वे स्वर्ण के हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं । उन भौमों के एकदम मध्यभाग में जो पांचवां भौम है उस भौम के ठीक मध्यभाग में एक बड़ा सिंहासन कहा गया है, उस सिंहासन का वर्णन, देवदूष्प का वर्णन यावत् वहाँ अंकुशों में मालाएँ लटक रही हैं, यह सब पूर्ववत् कहना चाहिए। उस सिंहासन के पश्चिम-उत्तर (वायव्यकोण) में, उत्तर में, उत्तरपूर्व (ईशानकोण) में विजयदेव के चार हजार सामानिक देवों के चार हजार भद्रासन कहे गये हैं। उस सिंहासनं पूर्व में विजयदेव की चार सपरिवार अग्रमहिषियों के चार भद्रासन कहे गये हैं। उस सिंहासन के दक्षिणपूर्व में (आग्नेयकोण में) विजयदेव की आभ्यन्तर पर्षदा के आठ हजार देवों के आठ हजार भद्रासन कहे गये हैं । उस सिंहासन के दक्षिण में विजयदेव की मध्यम पर्षदा के दस हजार देवों के दस हजार भद्रासन कहे गये हैं । उस सिंहासन के दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यकोण) में विजयदेव की बाह्य पर्षदा के बारह हजार देवों के बारह हजार भद्रासन कहे गये हैं । उस सिंहासन के पश्चिम में विजयदेव के सात अनीकाधिपतियों के सात भद्रासन कहे गये हैं । उस सिंहासन के पूर्व में, दक्षिण में, पश्चिम में और उत्तर में विजयदेव के सोलह हजार आत्मरक्षक देवों के सोलह हजार सिंहासन हैं । पूर्व में चार हजार, इसी तरह चारों दिशाओं में चार-चार हाजर यावत् उत्तर में चार हजार सिंहासन कहे गये हैं । भौमों में प्रत्येक में भद्रासन कहे गये हैं । (ये भद्रासन - सामानिकादि देव परिवारों से रहित जानने चाहिए ।) १. वृत्ति में वृक से अंकित पाठ नहीं है। वहाँ रुरु से अंकित पाठ मान्य किया गया है। किन्हीं प्रतियों में 'रुरु' पाठ नहीं है। कही दोनों हैं। इन दोनों में से एक को स्वीकार करने से ही कुल संख्या १०८० होती है। - सम्पादक
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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