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________________ ३७०] [जीवाजीवाभिगमसूत्र बहुत ही आकर्षक है। यह द्वार इतने अधिक प्रभासमुदाय से युक्त है कि यह स्वभाव से नहीं किन्तु विशिष्ट विद्याशक्ति के धारक समश्रेणी के विद्याधरों के युगलों के यंत्रप्रभाव (शक्तिविशेष) से इतना प्रभासित हो रहा है-ऐसा लगता है। यह द्वार हजारों रूपकों से युक्त है। यह दीप्तिमान है, विशेष दीप्तिमान है, देखने वालों के नेत्र इसी पर टिक जाते हैं। इस द्वार का स्पर्श बहुत ही शुभ है या सुखरूप है। इसका रूप बहुत ही शोभायुक्त लगता है। यह द्वार प्रसन्नता पैदा करने वाला, दर्शनीय, सुन्दर है और बहुत ही मनोहर है। उस द्वार का विशेष वर्णनक इस प्रकार है इसकी नींव वज्रमय है। इसके पाये रिष्टरत्न के बने हैं। इसके स्तम्भ वैडूर्यरत्न के हैं। इसका बद्धभूमितल (फर्श) स्वर्ण से उपचित (रचित) और प्रधान पाँच वर्गों की मणियों और रत्नों से जटित है। इसकी देहली हंसगर्भ नामक रत्न की बनी हुई है। गोमेयक रत्न का इन्द्रकील है और लोहिताक्ष रत्नों की द्वारशाखाएँ हैं। इसका उत्तरंग (द्वार पर तिर्यक् रखा हुआ काष्ठ) ज्योतिरस रत्न का है। इसके किवाड वैडूर्यमणि के हैं, दो पाटियों को जोड़ने वाली कीलें लोहिताक्षरत्न की हैं, वज्रमय संधियां हैं, अर्थात् सांधों में वज्ररत्न भरे हुए हैं, इनके समुद्गक (सूतिकागृह) नाना मणियों के हैं, इसकी अर्गला और अर्गला रखने का स्थान वज्ररत्नों का है। इसकी आवर्तनपीठिका (जहाँ इन्द्रकील होता है) वज्ररत्न की है। किवाड़ों की भीतरी भाग अंकरत्न का है। इसके दोनों किवाड़ अन्तररहित और सघन हैं। उस द्वार के दोनों तरफ की भित्तियों में १६८ भित्तिगुलिका (पीठक तुल्य आलिया) हैं और उतनी ही (१६८) गोमानसी (शय्याएँ) हैं। इस द्वार पर नाना मणिरत्नों के व्याल-सों के चित्र बने हैं तथा लीला करती हुई पुत्तलियां भी नाना मणिरत्नों की बनी हुई हैं। इस द्वार का माडभाग वज्ररत्नमय हैं और उस माडभाग २ का शिखर चांदी का है। उस द्वार की छत के नीचे का भाग तपनीय स्वर्ण का है। इस द्वार के झरोखे मणिमय बांस वाले और लोहिताक्षमय प्रतिबांस वाले तथा रजतमय भूमि वाले हैं। इसके पक्ष और पक्षवाह अंकरत्न के बने हुए हैं। ज्योतिरसरत्न के बांस और बांसकवेलु (छप्पर) हैं, रजतमयी पट्टिकाएँ हैं, जातरूप स्वर्ण की ओहाडणी (विरल आच्छादन) हैं, वज्ररत्नमय ऊपर की पंछणी (अविरल आच्छादन) हैं और सर्वश्वेत रजतमय आच्छादन हैं। बाहल्य से अंकरत्नमय. कनकमय कूट तथा स्वर्णमय स्तूपिका (लघु शिखर) वाला यह विजयद्वार है। उस द्वार की सफेदी शंखतल, विमलनिर्मल जमे हुए दही, गाय के दूध, फेन और चांदी के समुदाय के समान है, तिलकरत्नों और अर्धचन्द्रों से वह नानारूप वाली है, नाना प्रकार की मणियों की माला से वह अलंकृत है, अन्दर और बाहर से कोमलमृदु पुद्गलस्कधों से बना हुआ है, तपनीय (स्वर्ण) की रेत का जिसमें प्रस्तर-प्रस्तार है। ऐसा वह विजयद्वार सुखद और शुभस्पर्श वाला, सश्रीक रूप वाला, प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप है। १२९.(२)विजयस्सणंदारस्स उभओ पासिंदुहओ णिसीहियाए दो दो चंदणकलसपरिवाडीओ पण्णत्ताओ।तेणंचंदणकलसा वरकमलपइट्ठाणा सुरभिवरवारिपडिपुण्णा चंदणक १. वृत्ति में 'रययामयी आवत्तणपेढिया' पाठ है। अर्थात् आवर्तनपीठिका चांदी की है। २. आह मूलटीकाकार:-कूडो-माडभागः उच्छ्रयः शिखरमिति। केवलं शिखरमत्र माढभागस्य सम्बन्धि दृष्टव्यं न द्वारस्य, तस्य प्रागेव प्रोक्तत्वात् । -टीका।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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