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तृतीय प्रतिपत्ति: वनखण्ड की बावड़ियों आदि का वर्णन]
वद्धमाण-भद्दासण-कलस-मच्छ-दप्पणा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा जाव पडिरूवा ।
तेसिं णं तोरणाणं उप्पि किण्हचामरज्झया नीलचामरज्झया लोहियचामरज्झया हारिद्दचामरज्झया सुक्किलचामरज्झया अच्छा सण्हा रुप्पपडा वइरदंडा जलयामलगंधीया सुरूवा पासाइया जाव पडिरूवा ।
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तेसिं णं तोरणाणं उप्पि बहवे छत्ताइछत्ता । पडागाइपडागा घंटाजुयला चामरजुयला उप्पलहत्थगा जाव सयसहस्सपत्तहत्थगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ।
[१२७] (२) उन छोटी बावड़ियों यावत् कूपों में यहाँ वहाँ उन उन भागों में बहुत से विशिष्ट स्वरूप वाले त्रिसोपान कहे गये हैं । उन विशिष्ट त्रिसोपानों का वर्णन इस प्रकार है- वज्रमय उनकी नीवें है, रिष्टरत्नों के उसके पाये हैं, वैडूर्यरत्न के स्तम्भ हैं, सोने और चांदी के पटिये हैं, वज्रमय उनकी संधियां हैं, लोहिताक्ष रत्नों की सूइयां (कीलें ) हैं, नाना मणियों के अवलम्बन हैं (उतरने चढ़ने के लिए आजू-बाजू हुदण्डमा आधार, जिन्हें पकड़कर चढ़ना-उतरना होता है), नाना मणियों की बनी हुई आलम्बन बाहा हैं (अवलम्बन जिनके सहारे पर रहता है वे दोनों ओर के भींत समान स्थान ) ।
उन विशिष्ट त्रिसोपानों के आगे प्रत्येक के तोरण कहे गये हैं । उन तोरणों का वर्णन इस प्रकार हैवे तोरण नाना प्रकार की मणियों के बने हुए हैं। वे तोरण नाना मणियों से बने हुए स्तंभों पर स्थापित हैं, निश्चलरूप से रखे हुए हैं, अनेक प्रकार की रचनाओं से युक्त मोती उनके बीच-बीच में लगे हुए हैं, नाना प्रकार के ताराओं से वे तोरण उपचित (सुशोभित ) हैं । उन तोरणों में ईहामृग (वृक), घोड़ा, मनुष्य, मगर, पक्षी, व्याल (सर्प), किन्नर, रुरु (मृग), सरभ (अष्टापद), हाथी, वनलता और पद्मलता के चित्र बने हुए हैं। इन तोरणों के स्तम्भों पर वज्रमयी वेदिकाएँ हैं, इस कारण ये तोरण बहुत ही सुन्दर लगते हैं । समश्रेणी विद्याधरों के युगलों के यन्त्रों (शक्तिविशेष) के प्रभाव से ये तोरण हजारों किरणों से प्रभावित हो रहे हैं । (ये तोरण इतने अधिक प्रभासमुदाय से युक्त हैं कि इन्हें देखकर ऐसा भासित होता हैं कि ये स्वभावतः नहीं किन्तु किन्हीं विशिष्ट विद्याशक्ति के धारकों के यांत्रिक प्रभाव के कारण इतने अधिक प्रभासित हो रहे हैं) ये तोरण हजारों रूपकों से युक्त हैं, दीप्यमान हैं, विशेष दीप्यमान हैं, देखने वालों के नेत्र उन्हीं पर टिक जाते हैं। उन तोरणों का स्पर्श बहुत ही शुभ है, उनका रूप बहुत ही शोभायुक्त लगता है । वे तोरण प्रासादिक, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप है ।
उन तोरणों के ऊपर बहुत से आठ-आठ मंगल कहे गये हैं-१ स्वस्तिक, २ श्रीवत्स, ३. नंदिकावर्त, ४ वर्धमान, ५ भद्रासन, ६ कलश, ७ मत्स्य और ८ दर्पण । ये सब आठ मंगल सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं, सूक्ष्म पुद्गलों से निर्मित हैं, प्रासादिक हैं यावत् प्रतिरूप हैं ।
उन तोरणों के ऊर्ध्वभाग में अनेकों कृष्ण कान्तिवाले चामरों से युक्त ध्वजाएँ हैं, नील वर्ण वाले चामरों से युक्त ध्वजाएँ हैं, लाल वर्ण वाले चामरों से युक्त ध्वजाएँ हैं, पीले वर्ण के चामरों से युक्त ध्वजाएँ हैं और सफेद वर्ण के चामरों से युक्त ध्वजाएँ हैं । ये सब ध्वजाएँ स्वच्छ हैं, मृदु हैं, वज्रदण्ड के ऊपर का