________________
३३२]
[जीवाजीवाभिगमसूत्र
समिता, चंडा और जाता। आभ्यन्तर पर्षदा समिता कहलाती है, मध्यम पर्षदा चंडा कहलाती है और बाह्य परिषद् जाता कहलाती है ?
गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की आभ्यन्तर परिषदा के देव बुलाये जाने पर आते हैं, बिना बुलाये नहीं आते। मध्यम परिषद् के देव बुलाने पर भी आते हैं और बिना बुलाये भी आते हैं। बाह्य परिषद् के देव बिना बुलाये आते हैं। गौतम ! दूसरा कारण यह है कि असुरेन्द्र असुरराज चमर किसी प्रकार के ऊँचेनीचे, शोभन-अशोभन कौटुम्बिक कार्य आ पड़ने पर आभ्यन्तर परिषद् के साथ विचारणा करता है, उनकी सम्मति लेता है। मध्यम परिषदा को अपने निश्चित किये कार्य की सूचना देकर उन्हें स्पष्टता के साथ कारणादि समझाता है और बाह्य परिषदा को आज्ञा देता हुआ विचरता है। इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि असुरेन्द्र असुरराज चमर की तीन परिषदाएँ हैं-समिता, चंडा और जाता। आभ्यन्तर परिषद् समिता कहलाती है, मध्यम परिषद् चंडा कही जाती है और बाह्य परिषद् को जाता कहते हैं।'
[११९].कहिं णं भंते ! उत्तरिल्लाणं असुरकुमाराणं भवणा पण्णत्ता? जहा ठाणपदे जाव बली एत्थ वइरोयणिंदे वइरोयणराया परिवसइ जाव विहरइ।
बलिस्स णं भंते ! वयरोणिंदस्स वइरोयणरन्नो कइ परिसाओ पण्णत्ताओ?
गोयमा!तिणिपरिसाओ,तंजा-समियाचंडाजाया।अभितरियासमिया,मझमियाचंड बाहिरिया जाया।बलिस्सणंवइरोयणिंदस्सवइरोयणरन्नो अभितरपारिसाएकतिदेवसहस्सा? मज्झिमियाए परिसाए कति देवसहस्सा जाव बाहिरियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता ?
___गोयमा ! बलिस्सणं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो अभितरियाए परिसाए वीसंदेवसहस्सा पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए चउवीसं देवसहस्सा पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए अट्ठावीसं देवसहस्सा पण्णत्ता।अभिंतरियाए परिसाए अद्धपंचमा देविसया, मज्झिमियाए परिसाए चत्तारि देविसया पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए अधुढा देविसया पण्णत्ता।
बलिस्स ठितीए पुच्छा जाव बाहिरियाए परिसाए देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?
गोयमा ! बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो अभितरियाए परिसाए देवाणं अद्भुट्ठपलिओवमा ठिई पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए तिन्नि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता, बाहिरियाए परिसाए देवाणं अड्डाइज्जाइं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता, अभितरियाए परिसाए देवीणं अड्डाइज्जाइं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता, मज्झिमियाए परिसाए देवीणं दो पलिओवमाई
१. परिषद् की संख्या और स्थिति बताने वाली दो संग्रहणी गाथाएँ
चउवीस अट्ठवीसा बत्तीस सहस्स देव चमरस्स, अट्ठा तिन्नि तहा अड्डाइज्जा य देविसया। अढाइज्जा य दोत्रि य दिवङ्कपलियं कमेण देवठिई, पलियं दिवड्डमेगं अद्धो देवीण परिसासु॥