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८. दिक्कुमार के ७६ लाख ९. पवनकुमार के ९६ लाख
१०. स्तनितकुमार के ७६ लाख
[जीवाजीवाभिगमसूत्र
कुल मिलाकर भवनवासियों के सात करोड़ बहत्तर लाख भवनावास कहे गये हैं ।
वे भवन बाहर से गोल और भीतर से समचौरस तथा नीचे से कमल की कर्णिका के आकार के
हैं। उन भवनों के चारों ओर गहरी और विस्तीर्ण खाइयां और परिखाएँ खुदी हुई हैं, जिनका अन्तर स्पष्ट प्रतीत होता है। यथास्थान परकोटों, अटारियों, कपाटों, तोरणों और प्रतिद्वारों से वे सुशोभित हैं। वे भवन विविध यन्त्रों, शतघ्नियों (महाशिलाओं या महायष्टियों, मूसलों, मुसंडियों आदि शस्त्रों) से वेष्टित हैं। वे शत्रुओं द्वारा अयुध्य (युद्ध न करने योग्य) सदा जयशील, सदा सुरक्षित एवं अडतालीस कोठों से रचित, अडतालीस वनमालाओं से सुसज्जित, क्षेममय, शिवमय, किंकर देवों के दण्डों से उपरक्षित हैं । लीपने और पोतने से वे प्रशस्त हैं। उन पर गोशीर्षचन्दन और सरस रक्तचन्दन से पांचों अंगुलियों के छापे लगे हुए हैं । यथास्थान चन्दन के कलश रखे हुए हैं। उनके तोरण प्रतिद्वार देश के भाग चंदन के घड़ों से सुशोभित होते हैं । वे भवन ऊपर से नीचे तक लटकती हुई लम्बी, विपुल एवं गोलाकार मालाओं से युक्त हैं तथा पंचरंग के ताजे सरस सुगंधित पुष्पों के उपचार से युक्त होते हैं। वे काले अगर, श्रेष्ठ चीड, लोबान तथा धूप की महकती हुई सुगंध से रमणीय, उत्तम सुगंधित होने से गंधबट्टी के समान लगते हैं। वे अप्सरागण के संघातों से व्याप्त, दिव्य वाद्यों के शब्दों से भली-भांति शब्दायमान, सर्वरत्नमय, स्वच्छ, स्निग्ध, कोमल, घिसे हुए, पौंछे हुए, रज से रहित, निर्मल, निष्पंक, आवरणरहित कान्ति वाले, प्रभायुक्त, श्रीसम्पन्न, किरणों से युक्त, उद्योत (शीतल प्रकाश) युक्त, प्रसन्न करने वाले दर्शनीय, अभिरूप ( अतिरमणीय) और प्रतिरूप ( सुरूप ) हैं ।
इन भवनों में पूर्वोक्त बहुत से भवनवासी देव रहते हैं । उन भवनवासी देवों की दस जातियां हैंअसुरकुमार यावत् स्तनितकुमार। उन दसों जातियों के देवों के मुकुट या आभूषणों में अंकित चिह्न क्रमशः इस प्रकार हैं
१. चूडामणि, २. नाग का फन, ३. गरुड, ४. वज्र, ५. पूर्णकलश से अंकित मुकुट, ६. सिंह, ७. मकर, ८ . हास्ति का चिह्न, ९. श्रेष्ठ अश्व और १०. वर्द्धमानक ( सिकोरा ) ।
वे भवनवासी देव उक्त चिह्नों से अंकित, सुरूप, महर्द्धिक, महाद्युति वाले, महान् बलशाली, महायशस्वी, महान् अनुभाग (प्रभाव) व अति सुख वाले, हार से सुशोभित वक्षःस्थल वाले, कड़ों और बाजूबंदों से स्तम्भित भुजा वाले, कपोलों को छूने वाले कुण्डल अंगद, तथा कर्णपीठ के धारक, हाथों में विचित्र ( नानारूप) आभूषण वाले, विचित्र पुष्पमाला और मस्तक पर मुकुट धारण किये हुए, कल्याणकारी उत्तम वस्त्र पहने हुए, कल्याणकारी श्रेष्ठ माला और अनुलेपन के धारक, दैदीप्यमान शरीर वाले, लम्बी वनमाला के धारक तथा दिव्य वर्ण से, दिव्य गंध से, दिव्य स्पर्श से, दिव्य संहनन (शक्ति) से, दिव्य आकृति से, दिव्य ऋद्धि
दिव्य द्युति से दिव्य प्रभा से, दिव्य छाया (शोभा) से, दिव्य अर्चि (ज्योति) से, दिव्य तेज से एवं दिव्य