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________________ उपलब्ध होती हैं। सोलह प्रकार के रत्न, अस्त्र-शस्त्रों के नाम, धातुओं के नाम, विविध प्रकार के पात्र, विविध आभूषण भवन, वस्त्र, ग्राम, नगर आदि का वर्णन है। त्यौहार, उत्सव, नृत्य, यान आदि के विविध नाम भी इसमें वर्णित हैं। कला, युद्ध व रोग आदि के नाम भी उल्लिखित हैं। इसमें उद्यान, वापी, पुष्करिणी, कदलीघर, प्रसाधनघर और स्त्री-पुरुष के अंगों का सरस एवं साहित्यिक वर्णन भी है। प्राचीन सांस्कृतिक सामग्री की इसमें प्रचुरता है। प्राचीन भारत के सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों के अध्ययन की दृष्टि से इस आगम का बहुत महत्त्व है। व्याख्या-साहित्य जीवाभिगम का व्याख्या - साहित्य वर्तमान में इस प्रकार उपलब्ध है। जीवाभिगम पर न निर्युक्ति लिखी गई और न कोई भाष्य ही लिखा गया। हाँ इस पर सर्वप्रथम व्याख्या के रूप में चूर्णि प्राप्त होती है, पर वह चूर्णि अप्रकाशित है, इसलिए उस चूर्णि के सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि वह चूर्णि जिनदास गणि महत्तर की है या संघदास गणि की है। वाभिगम पर संस्कृत भाषा में आचार्य मलयगिरि की वृत्ति मिलती है। यह वृत्ति जीवाभिगम के पदों के विवेचन के रूप में है । जीवाभिगमवृत्ति प्रस्तुत वृत्ति जीवाभिगम के पदों के विवेचन के रूप में है। इस वृत्ति में अनेक ग्रन्थों और ग्रन्थकारों का नामोल्लेख किया गया है - जैसे कि धर्मसंग्रहणीटीका, प्रज्ञापनाटीका, प्रज्ञापना-मूल- टीका, तत्त्वार्थ मूल - टीका, सिद्धप्राभृत, विशेषणवती, जीवाभिगममूल- टीका, पंचसंग्रह, कर्मप्रकृति संग्रहणी, क्षेत्र- समास टीका, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - टीका, कर्मप्रकृतिसंग्रहणी चूर्णि, वसुदेवचरित, जीवाभिगमचूर्णि, चन्द्रप्रज्ञप्तिटीका, सूर्यप्रज्ञसिटीका, देशीनाममाला, सूर्यप्रज्ञप्तिनिर्युक्ति, पंचवस्तुक, आचार्य हरिभद्ररचित तत्त्वार्थटीका, तत्त्वार्थ भाष्य, विशेषावश्यक भाष्य स्वोपज्ञवृत्ति, पंचसंग्रहटीका प्रभृति । इन ग्रन्थों में से अनेक ग्रन्थों के उद्धरण भी टीका में प्रयुक्त हुए हैं। वृत्ति के प्रारम्भ में मंगल के प्रयोजन पर प्रकाश डालते हुए आगे के सूत्रों में तन्तु और पट के सम्बन्ध में भी विचार चर्चा की गई है और माण्डलिक, महामाण्डलिक, ग्राम, निगम, खेट, कर्वट, मडम्ब, पत्तन, द्रोणमुख, आकर, आश्रम, सम्बाध, राजधानी प्रभृति मानव बस्तियों के स्वरूप पर चिन्तन किया गया है। वृत्ति में ज्ञानियों के भेदों पर चिन्तन करते हुए यह बताया है कि सिद्धप्राभृत में अनेक ज्ञानियों का उल्लेख है। नरकावासों के सम्बन्ध में बहुत ही विस्तार से प्रकाश डाला है और क्षेत्रसमासटीका, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिटीका के अवलोकन का संकेत किया है। नारकीय जीवों की शीत और उष्ण वेदना पर विचार करते हुए प्रावृट्, वर्षारात्र, शरद्, हेमन्त, वसन्त और ग्रीष्म- इन छः ऋतुओं का वर्णन किया है। प्रथम शरद् कार्तिक मास को बताया गया है। ज्योतिष्क देवों के विमानों का चिन्तन करते हुए विशेष जिज्ञासुओं को चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति एवं संग्रहणी टीकाएँ देखने का निर्देश किया गया है. एकादश अलंकारों का भी इसमें वर्णन है और राजप्रश्नीय में उल्लिखित ३२ प्रकार की नाट्यविधि का भी सरस वर्णन किया गया है। प्रस्तुत वृत्ति को आचार्य ने 'विवरण' शब्द से व्यवहृत किया है और इस विवरण का ग्रन्थमान १६०० श्लोक प्रमाण है । [३५]
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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