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________________ [जीवाजीवाभिगमसूत्र की कितनी लेश्याएं कही गई हैं, इत्यादि सब खेचरों की तरह कहना चाहिए। विशेषता इस प्रकार हैइनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तीन पल्योपम है। मरकर यदि नरक में जावें तो चौथी नरकपृथ्वी तक जाते हैं। इनकी दस लाख जातिकुलकोडी हैं । २७२ ] जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिकों की पृच्छा ? गौतम ! जैसे भुजपरिसर्पों का कहा वैसे कहना । विशेषता यह है कि ये मरकर यदि नरक में जावें तो सप्तम पृथ्वी तक जाते हैं। इनकी साढ़े बारह लाख जातिकुलकोडी कही गई हैं। हे भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीवों की कितनी जातिकुलकोडी कही गई हैं ? गौतम ! नौ लाख जातिकुलकोडी कही गई हैं । हे भगवन् ! त्रीन्द्रिय जीवों की कितनी जातिकुलकोडी हैं ? गौतम ! आठ लाख जातिकुलकोडी कही हैं । भगवन् ! द्वीन्द्रियों की कितनी जातिकुलकोडी हैं ? गौतम ! सात लाख जातिकुं लकोडी हैं । विवेचन - अन्य सब कथन पाठसिद्ध ही है । केवल चतुष्पदस्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिकों का योनिसंग्रह दो प्रकार का कहा है, यथा- पोयया य सम्मुच्छिमा य । यहाँ पोतज में अण्डजों से भिन्न जितने भी जरायुज या अजरायुज गर्भज जीव हैं उनका समावेश कर दिया गया है। अतएव दो प्रकार का योनिसंग्रह कहा है, अन्यथा गो आदि जरायुज हैं और सर्पादि अण्डज हैं- ये दो प्रकार और एक सम्मूर्च्छिम यों तीन प्रकार का योनिसंग्रह कहा जाता। लेकिन यहाँ दो ही प्रकार का कहा है, अतएव पोतज में जरायुज अजरायुज सब गर्भजों का समावेश समझना चाहिए। यहाँ तक योनि जातीय जातिकुलकोटि का कथन किया, अब भिन्न जातीय का अवसर प्राप्त है अतएव भिन्न जातीय गंधांगों का प्ररूपण करते हैं गंधांग प्ररूपण ९८. कइ णं भंते ! गंधा पण्णत्ता ? कइ णं भंते ! गंधसया पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्तगंधा सत्तगंधसया पण्णत्ता । कणं भंते ! पुफ्फजाइ - कुलकोडीजोणिपमुह-सयसहस्सा पण्णत्ता ? गोयमा ! सोलस पुप्फजातिकुलकोडी जोणीपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता, तं जहा - चत्तारि जलयाणं, चत्तारि थलयाणं, चत्तारि महारुक्खियाणं, चत्तारि महागुम्मियाणं । कइ णं भंते ! वल्लीओ कइ वल्लिसया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि वल्लीओ चत्तारि वल्लिसया पण्णत्ता । कइ णं भंते ! लयाओ कति लयासया पण्णत्ता ? गोयमा ! अट्ठलयाओ, अट्ठलयासया पण्णत्ता ।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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