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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : नरकों में पृथ्वी आदि का स्पर्शदि प्ररूपण] [२५५ गौतम ! वे अनिष्ट यावत् अमणाम जलस्पर्श का अनुभव करते हैं। इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना चाहएि। इसी प्रकार तेजस्, वायु और वनस्पति के स्पर्श के विषय में रत्नप्रभा से लेकर सप्तम पृथ्वी तक के नैरयिकों के विषय में जानना चाहिए। ___ हे भगवन् ! क्या यह रत्नप्रभापृथ्वी दूसरी पृथ्वी की अपेक्षा बाहल्य (मोटाई) में बड़ी है और सर्वान्तों में लम्बाई-चौड़ाई में सबसे छोटी है ? हाँ गौतम ! यह रत्नप्रभापृथ्वी दूसरी पृथ्वी की अपेक्षा बाहल्य में बडी और लम्बाई-चौड़ाई में छोटी हे भगवन् ! क्या शर्कराप्रभापृथ्वी नामक दूसरी पृथ्वी तीसरी पृथ्वी से बाहल्य में बड़ी और सर्वान्तों में छोटी है ? ___ हाँ गौतम ! दूसरी पृथ्वी तीसरी पृथ्वी से बाहल्य में बड़ी और लम्बाई-चौड़ाई में छोटी है। इसी प्रकार तब तक कहना चाहिए यावत् छठी पृथ्वी सातवीं पृथ्वी की अपेक्षा बाहल्य में बड़ी और लम्बाई-चौड़ाई में छोटी है। विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में नरक-पृथ्वियों के भूमिस्पर्श, जलस्पर्श, तेजस्स्पर्श, वायुस्पर्श और वनस्पतिस्पर्श के विषय को लेकर नैरयिकों के अनुभव की चर्चा है। नैरयिक जीवों को तनिक भी सुख के निमित्त नहीं हैं अतएव उनको वहाँ की भूमि का स्पर्श आदि सब अनिष्ट, अकांत, अप्रिय, अमनोज्ञ और अमणाम लगते हैं। यद्यपि नरकपृथ्वियों में साक्षात् बादरअग्निकाय नहीं है, तथापि उष्णरूपता में परिणत नरकभित्तियों का स्पर्श तथा परोदीरित वैक्रियरूप उष्णता वहाँ समझनी चाहिए। साथ ही इस सूत्र में यह भी बताया गया है कि यह रत्नप्रभापृथ्वी बाहल्य की अपेक्षा सबसे बड़ी है क्योंकि इसकी मोटाई १ लाख ८० हजार योजन है और आगे-आगे की पृथ्वियों की मोटाई कम है। दूसरी की १ लाख बत्तीस हजार, तीसरी की एक लाख अट्ठावीस हजार, चौथी की एक लाख बीस हजार, पांचवीं की एक लाख अठारह हजार, छठी की एक लाख सोलह हजार और सातवीं की मोटाई एक लाख आठ हजार है। लम्बाई-चौड़ाई में रत्नप्रभापृथ्वी सबसे छोटी है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई एक राजू है। दूसरी पृथ्वी की लम्बाई-चौडाई दो राजू की है। तीसरी की तीन राजू, चौथी की ४ राजू, पांचवीं की ५ राजू, छठी की छह राजू और सातवीं की सात राजू लम्बाई-चौड़ाई है। बाहल्य में आगे-आगे की पृथ्वी छोटी हौ और लम्बाई-चौड़ाई में आगे-आगे की पृथ्वी बड़ी है। ९३. इमीसेणंभंते ! रयणप्पभाए पुढवीएतीसाए निरयावास-सयसहस्सेसुइक्कमिक्कंसि निरयावासंसि सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता पुढवीकाइयत्ताए जाव वणस्सइकाइत्ताए नेरइयत्ताए उववन्नपुव्वा ? हंता गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो। एवं जाव अहेसत्तमाए पुढवीए णवरं जत्थ
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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