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________________ २४०] [जीवाजीवाभिगमसूत्र जे णीललेसा पण्णत्ता ते थोवा। पंकप्पभाए पुच्छा, एक्का नीललेसा पण्णत्ता, धूमप्पभाए पुच्छा, गोयमा ! दो लेस्साओ पण्णत्ताओ, तं जहा-किण्हलेस्सा य नीललेस्सा य। ते बहुयरगा जे नीललेस्सा, ते थोवतरगा जे किण्हलेसा। तमाए पुच्छा, गोयमा ! एक्का किण्हलेसा। अधेसत्तमाए एक्का परमकिण्हलेस्सा। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरड्या किं सम्मदिट्टी मिच्छदिट्ठी सम्मामिच्छदिट्ठी ? गोयमा ! सम्मदिट्ठी वि मिच्छदिट्ठी वि सम्मामिच्छदिट्ठी वि, एवं जाव अहेसत्तमाए। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइया किं णाणी अण्णाणी? गोयमा ! णाणी वि अण्णाणि वि। जे णाणी ते णियमा तिणाणी, तं. जहाआभिणिबोहियणाणी, सुयणाणी, अवधिणाणी। जे अण्णाणी ते अत्थेगइया दु अण्णाणि, अत्थेगइया ति अन्नाणी। जे दु अन्नाणि ते णियमा मतिअन्नाणी य सुय-अन्नाणी य। जे ति अन्नाणि ते णियमा मति-अन्नाणी, सुय-अन्नाणी, विभंगणाणी वि, सेसा णं णाणी वि अण्णाणी वि तिण्णि, जाव अहेसत्तमाए। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइया किं मणजोगी वइजोगी कायजोगी ? तिण्णि वि एवं जाव अहेसत्तमाए। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णेरइया किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता? गोयमा ! सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि एवं जाव अहेसत्तमाए पुढवीए। [इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरड्या ओहिणा केवइयं खेत्तं जाणंति पासंति ? गोयमा ! जहण्णेणं अधुट्ठगाउयाई उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं। सक्करप्पभाए पु० जहन्नेणं तिन्नि गाउयाई, उक्कोसेणं अधुट्ठाई। एवं अद्धद्धगाउयं पारिहायइ जाव अधेसत्तमाए जहन्नेणं अद्धगाउयं उक्कोसेणं गाउयं।] इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं कति समुग्धाता पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि समुग्धाता पण्णत्ता, तं जहा वेदणासमुग्याए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए वेउव्वियसमुग्घाए। एवं जाव अहेसत्तमाए। [८८] (२) हे भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में कितनी लेश्याएँ कही गई हैं ? गौतम ! एक कापोतलेश्या कही गई है। इसी प्रकार शर्कराप्रभा में भी कापोतलेश्या है। बालुकाप्रभा में भी दो लेश्याएँ हैं-नीललेश्या और कापोतलेश्या। कापोतलेश्या वाले अधिक हैं और नीललेश्या वाले थोड़े हैं। पंकप्रभा के प्रश्न में एक नीललेश्या कही गई है। धूमप्रभा के प्रश्न में दो लेश्याएँ कही गई हैं-कृष्णलेश्या
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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