SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय प्रतिपत्ति: घनोदधिवलय का तिर्यग बाहल्य] [२११ खेत्तच्छेएण छिज्जमाणस्स जाव हंता अत्थि। एवं जाव अधेसत्तमाए जं जस्स बाहल्लं। एवं तणुवायवलयस्स वि जाव अहेसत्तमा जं जस्स बाहल्लं। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिवलए किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए पण्णत्ते। जे णं इमं रयणप्पभं पुढविं सव्वओ संपरिक्खिवित्ता णं चिट्ठइ, एवं जाव अधेसत्तमाए पुढवीए घणोदधिवलए; णवरं अप्पणप्पणं पुढविं संपरिक्खिवित्ता णं चिट्ठति। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए घणवातवलए किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा! वट्टे वलयागारे तहेव जावजेणंइमीसेणंरयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिवलयं सव्वओ समंता संपरिक्खिवित्ता णं चिट्ठइ एवं जाव अहेसत्तमाए घणवातवलए। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तणुवातवलए किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए जाव जे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणवातवलयं सव्वओ समंता संपरिक्खिवित्ता णं चिट्ठइं। एवं जाव अहेसत्तमाए तणुवातवलए। इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढवी केवइ आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता? गोयमा! असंखेज्जाइंजोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ता। एवं जाव अधेसत्तमा। इमा णं भंते ! रयणप्पभा पढवी अंते य मज्झे य सव्वत्थ समा बाहल्लेणं पण्णत्ता? हंता गोयमा ! इमा णं रयणप्पभापुढवी अंते य मज्झे य सव्वत्थ समा बाहल्लेणं, एवं जाव अधेसत्तमा। [७६-२] हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के छह योजन बाहल्य वाले और बुद्धिकल्पित प्रतरादि विभाग वाले घनोदधिवलय में वर्ण से काले आदि द्रव्य हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं। हे भगवन् ! इस शर्कराप्रभापृथ्वी के त्रिभागसहित छह योजन बाहल्य वाले और प्रतरादि विभाग वाले घनोदधिवलय में वर्ण से काले आदि द्रव्य हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं। इस प्रकार जितना बाहल्य है, वह विशेषण लगाकर सप्तमपृथ्वी के घनोदधिवलय तक कहना चाहिए। हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के साढ़े चार योजन बाहल्य वाले और प्रतरादि रूप में विभक्त घनवातवलय में वर्णादि परिणत द्रव्य हैं क्या ? हाँ, गौतम हैं ! इसी प्रकार जिसका जितना बाहल्य है, वह विशेषण लगाकर सातवीं पृथ्वी तक कहना चाहिए। इसी प्रकार तनुवातवलय के सम्बन्ध में भी अपने-अपने बाहल्य का विशेषण लगाकर सप्तम पृथ्वी
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy