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तृतीय प्रतिपत्ति :घनोदधि आदि की पृच्छा]
[२०१
धूमप्रभा तमःप्रभा तमस्तमःप्रभा
२६५
६३ १ मध्य में
२९९७३५
९९९३२ ४ चारों दिशाओं में
३००००० ९९९९५
घनोदधि आदि की पृच्छा
७१. अस्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे घणोदहीति वा, घणवातेति वा, तणुवातेति वा, ओवासंतरेति वा ?
हंता अत्थि। एवं जाव अहेसत्तमाए।
[७१] हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे घनोदधि है, घनवात है, तनुवात है और शुद्ध आकाश है क्या ?
हाँ गौतम ! है। इसी प्रकार सातों पृथ्वियों के नीचे घनोदधि, घनवात, तनुवात और शुद्ध आकाश है । • विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में नरकपृथ्वियों का आधार बताया गया है। सहज ही यह प्रश्न हो सकता है कि ये सातों नरकपृथ्वियां किसके आधार पर स्थित हैं ? इसका समाधान करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि ये पृथ्वियां जमे हुए जल पर स्थित हैं। जमे हुए जल को घनोदधि कहते है। पुनः प्रश्न होता है कि घनोदधि किसके आधार पर रहा हुआ है तो उसका समाधान किया गया है कि घनोदधि, घनवात पर स्थित है। अर्थात् पिण्डीभूत वायु के आधार पर घनोदधि स्थित है। घनीभूत वायु (घनवात) तनुवात (हल्की वायु) पर आधारित है और तनुवात आकाश पर प्रतिष्ठित है। आकाश किसी पर अवलम्बित न होकर स्वयं प्रतिष्ठित है। तात्पर्य यह है कि आकाश के आधार पर तनुवात, तनुवात पर घनवात और घनवात पर घनोदधि और घनोदधि पर ये रत्नप्रभादि पृथ्वियां स्थित हैं।
प्रश्न हो सकता है कि वायु के आधार पर उदधि और उदधि के आधार पर पृथ्वी कैसे ठहर सकती है ? इसका समाधान एक लौकिक उदाहरण के द्वारा किया है गया। कोई व्यक्ति मशक (वस्ती) को हवा में फुला दे। फिर उसके मुंह को फीते से मजबूत गांठ देकर बांध दे तथा उस मशक के बीच के भाग को भी बांध दे। ऐसा करने से मशक में भरे हुए पवन के दो भाग हो जावेंगे, जिससे थैली डुगडुगी जैसी लगेगी। तब उस मशक का मुंह खोलकर ऊपर के भाग की हवा निकाल दे और उसकी जगह पानी भरकर फिर उस मशक का मुंह बांध दे और बीच का बन्धन खोल दे। तब ऐसा होगा कि जो पानी उस मशक के ऊपरी भाग में है, वह ऊपर के भाग में ही रहेगा, अर्थात् नीचे भरी हुई वायु के ऊपर ही वह पानी रहेगा, नीचे नहीं जा सकता। जैसे वह पानी नीचे भरी वायु के आधार पर ऊपर ही टिका रहता है, उसी प्रकार घनवात के ऊपर घनोदधि रह सकता है।
१. रत्नशर्कराबालुकापंकधूमतमोमहातमःप्रभाभूमयां घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः सप्ताधोधः पृथुत्तराः तत्त्वार्थ
-तत्त्वार्थसूत्र अ.३