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इसी तरह अप्बहुलकांड कितने प्रकार का है ? गौतम ! एकाकार है ।
भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी कितने प्रकार की है ?
गौतम ! एक ही प्रकार की है।
[जीवाजीवाभिगमसूत्र
इसी प्रकार अधः सप्तमपृथ्वी तक एकाकार कहना चाहिए ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र मे रत्नप्रभा आदि पृथ्वियों के प्रकार ( विभाग) की पृच्छा है। उत्तर में कहा गया है कि रत्नप्रभापृथ्वी के तीन प्रकार ( विभाग) हैं, यथा - खरकांड, पंकबहुलकांड और अप्बहुलकांड। काण्ड का अर्थ है-विशिष्ट भूभाग । खर का अर्थ है कठिन । रत्नप्रभापृथ्वी का प्रथम खरकाण्ड १६ विभाग वाला है । रत्नकाण्ड नामक प्रथम विभाग, वज्रकाण्ड नामक द्वितीय विभाग, वैडूर्यकाण्ड नामक तृतीय विभाग, इस प्रकार रिष्टरत्नकाण्ड नामक सोलहवां विभाग है। सोलह रत्नों के नाम 'अनुसार रत्नप्रभा के खरकाण्ड के सोलह विभाग हैं। प्रत्येक काण्ड एक हजार योजन की मोटाई वाला है । इस प्रकार खरकाण्ड सोलह हजार योजन की मोटाई वाला है। उक्त रत्नकाण्ड से लगाकर रिष्टकाण्ड पर्यन्त सब काण्ड एक ही प्रकार के हैं, अर्थात् इनमें फिर विभाग नहीं है ।
दूसरा काण्ड पंकबहुल है। इसमें कीचड़ की अधिकता है और इसका और विभाग न होने से यह एक प्रकार का ही है। यह दूसरा काण्ड ८४ हजार योजन की मोटाई वाला है। तीसरे अप्बहुलकाण्ड में जल की प्रचुरता है और कोई विभाग नहीं हैं, एक ही प्रकार का है। यह ८० हजार योजन की मोटाई वाला है। इस प्रकार रत्नप्रभा के तीनों काण्डों को मिलाने से रत्नप्रभा की कुल मोटाई (१६+८४+८०) एक लाख अस्सी हजार हो जाती है ।
दूसरी नरकपृथ्वी शर्कराप्रभा से लेकर अधः सप्तमपृथ्वी तक की नरकभूमियों के कोई विभाग नहीं हैं । सब एक ही आकार वाली हैं। नरकवासों की संख्या
७०. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए केवइया निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता ? गोयमा ! तीसं णिरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता, एवं एएणं अभिलावेणं सव्वासिं पुच्छा, इमा गाया अणुगंतव्वा
तीसा य पण्णवीसा पण्णरस दसेव तिण्णि य हवंति ।
पंचूण सयसहस्सं पंचेव अणुत्तरा णरगा ॥ १॥
जाव अहेसत्तमाए पंच अणुत्तरा महतिमहालया महाणरगा पण्णत्ता, तं जहा - काले, महाकाले, रोरुए, महारोरुए, अपइट्ठाणे ।
[७० ] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में कितने लाख नरकावास कहे गये हैं ?
गौतम ! तीस लाख नरकावास कहे गये हैं । इस गाथा के अनुसार सातों नरकों में से नरकावासों