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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
हैं और वैमानिक देव दो प्रकार के हैं-कालोपपन्न और कल्पातीत । सौधर्म आदि बारह देवलोक कल्पोपन्न हैं और ग्रैवेयक तथा अनुत्तरोपपातिक देव कल्पातीत हैं। अनुत्तरोपपातिक के पांच भेद हैं-विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध । अतः 'जाव सव्वट्ठसिद्धा' कहा गया है। कालस्थिति
५३. पुरिसस्स णं भंते ! केवइयं कालठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोमाइं। तिरिक्खजोणियपुरिसाणं मणुस्सपुरिसाणं जाव चेव इत्थीणं ठिई सा चेव भाणियव्या। देवपुरिसाण विजाव सव्वसिद्धाणं ठिई जहा पण्णवणाए (ठिइपए) तहा भाणियव्वा। [५३] हे भगवन् ! पुरुष की कितने काल की स्थिति कही गई है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से तेतीस सागरोपम।
तिर्यंचयोनिक पुरुषों की और मनुष्य पुरुषों की वही स्थिति जाननी चाहिए जो तिर्यंचयोनिक स्त्रियों और मनुष्य स्त्रियों की कही गई है। देवयोनिक पुरुषों की यावत् सर्वार्थसिद्ध विमान के देव पुरुषों का स्थिति वही जाननी चाहिए जो प्रज्ञापना के स्थितिपद में कही गई है।
विवेचन-अपने अपने भव को छोड़े बिना पुरुषों की कितने काल तक की स्थिति है, ऐसा प्रश्न किये जाने पर भगवान् ने कहा कि जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से तेतीस सागरोपम की स्थिति है। अन्तर्मुहूर्त में मरण हो जाने की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त की जघन्य स्थिति कही है और अनुत्तरोपपातिक देवों की अपेक्षा तेतीस सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति कही गई है।
औधिक तिर्यंच पुरुषों की, जलचर, स्थलचर, खेचर पुरुषों की स्थिति वही है जो तिर्यंचस्त्री की पूर्व में कही गई है। मनुष्य पुरुष की औधिक तथा कर्मभूमि-अकर्मभूमि-अन्तीपों के मनुष्य पुरुषों की सामान्य
और विशेष से वही स्थिति समझ लेनी चाहिये जो अपने-अपने भेद में स्त्रियों की कही गई है। स्पष्टता के लिए उसका उल्लेख निम्न प्रकार हैतिर्यंच पुरुषों की स्थिति
औधिक तिर्यंचयोनिक पुरुषों की जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से तीन पल्योपम। जलचर पुरुषों की जघन्य से अन्तर्मुहूर्त, उत्कर्ष से पूर्वकोटि।
चतुष्पद स्थलचर पुरुषों की जघन्य से अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तीन पल्योपम, उरपरिसर्प स्थलचर पुरुषों की जघन्य से अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट पूर्वकोटि।
भुजपरिसर्प स्थलचर पुरुषों की तथा खेचर पुरुषों की जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से पल्योपम का असंख्येयभाग। मनुष्य पुरुषों की स्थिति
औधिक मनुष्य पुरुषों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की है।