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________________ [१३५ द्वितीय प्रतिपत्ति: मनुष्यस्त्रियों का तद्रूप में अवस्थानकाल ] देवकुरु - उत्तरकुरु की स्त्रियों का अवस्थानकाल जन्म की अपेक्षा पल्योपम का असंख्यातवां भाग न्यून तीन पल्योपम और उत्कृष्ट से तीन पल्योपम है। संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटि अधिक तीन पल्योपम। भगवन् ! अन्तद्वीपों की अकर्मभूमि की मनुष्य स्त्रियों का उस रूप में अवस्थानकाल कितना है ? गौतम ! जन्म की अपेक्षा जघन्य से देशोनपल्योपम का असंख्यातवां भाग कम पल्योपम का असंख्यातवां भाग है और उत्कृष्ट से पल्योपम का असंख्यातवां भाग है। संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटि अधिक पल्योपम का असंख्यातवां भाग । भगवन् ! देवस्त्री देवस्त्री के रूप में कितने काल तक रह सकती है ? गौतम ! जो उसकी भवस्थिति है, वही उसका अवस्थानकाल है। विवेचन - मनुष्यस्त्रियों का सामान्यतः अवस्थानकाल वही है जो सामान्य तिर्यंचस्त्रियों का कहा गया है । अर्थात् जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम है। इसकी भावना तिर्यंचस्त्री के अधिकार में पहले कही जा सकती है, तदनुसार जानना चाहिए । कर्मभूमि की मनुष्यस्त्री का अवस्थानकाल क्षेत्र की अपेक्षा अर्थात् सामान्यतः कर्मक्षेत्र को लेकर जघन्य अन्तर्मुहूर्त है, इसके बाद उसका परित्याग सम्भव है। उत्कर्ष से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम का है। इसमें सात भव महाविदेहों में और आठवां भव भरत - ऐरावतों में । एकान्त सुषमादि आरक में तीन पल्योपम का प्रमाण समझना चाहिए। धर्माचरण को लेकर जघन्य से एक समय है, क्योंकि तदावरणकर्म के क्षयोपशम की विचित्रता से एक समय की संभावना है। इसके बाद मरण हो जाने से चारित्र का प्रतिपात हो जाता है। उत्कर्ष से देशोन पूर्वकोटि है, क्योंकि चारित्र का परिपूर्ण काल भी उत्कर्ष से देशोन पूर्वकोटि ही है । . भरत - ऐरवत कर्मभूमिक मनुष्यस्त्री का अवस्थानकाल जघन्य से अन्तर्मुहूर्त है और उत्कर्ष से देशोन पूर्वकोटि अधिक तीन पल्योपम का है। इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है पूर्वविदेह अथवा पश्चिमविदेह की पूर्वकोटि आयु वाली स्त्री को किसी ने भरतादि क्षेत्र में एकान्त सुषमादि काल में संहृत किया । वह यद्यपि महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न हुई है तो भी पूर्वोक्त मागध पुरुष के दृष्टान्त से भरत - ऐरावत की कही जाती है। वह स्त्री पूर्वकोटि तक जीवित रहकर अपनी आयु का क्षय होने पर वहीं भरतादि क्षेत्र में एकान्त सुषम आरक प्रारम्भ उत्पन्न हुई। इस अपेक्षा से देशोन पूर्वकोटि अधिक तीन पल्योपम का उसका अवस्थानकाल हुआ । धर्माचरण की अपेक्षा कर्मभूमिज स्त्री की तरह जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से देशोन पूर्वकोटि जानना चाहिए । पूर्वविदेह - पश्चिमविदेह कर्मभूमिज स्त्री का अवस्थानकाल क्षेत्र को लेकर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से पूर्वकोटिपृथक्त्व है । वही पुनः उत्पत्ति की अपेक्षा से समझना चाहिए। धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कर्ष से देशोन पूर्वकोटि है। यह कर्मभूमिज स्त्रियों की वक्तव्यता हुई ।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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