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________________ राजप्रश्नीयसूत्र मणहरे गीते मणहरे नट्टे मणहरे वातिए उप्पिंजलभूते कहकहभूते दिव्वे देवरमणे पवत्ते या वि होत्था । ५२ ८४— इस प्रकार का वह वाद्य सहचरित दिव्य संगीत दिव्य वादन और दिव्य नृत्य आश्चर्यकारी होने से अद्भुत, शृंगाररसोपेत होने से श्रृंगाररूप, परिपूर्ण गुण युक्त होने से उदार, दर्शकों के मनोनुकूल होने से मनोज्ञ था कि जिससे वह मनमोहक गीत, मनोहर नृत्य और मनोहर वाद्यवादन सभी के चित्त का आक्षेपक ( ईर्ष्या - स्पर्धा जनक) था। दर्शकों के कहकहों—- वाह-वाह के कोलाहल से नाट्यशाला को गुंजा रहा था। इस प्रकार से वे देवकुमार और कुमारिकायें दिव्य देवक्रीड़ा में प्रवृत्त हो रहे थे। नाट्याभिनयों का प्रदर्शन ८५ तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स सोत्थिय- सिरिवच्छ- नंदियावत्त- वद्धमाणग-भद्दासण- कलस-मच्छ दप्पणमंगल्लभत्तिचित्तं णामं दिव्वं नट्टविधिं उवदंसेंति । ८५— तत्पश्चात् उस दिव्य नृत्य क्रीड़ा में प्रवृत्त उन देवकुमारों और कुमारिकाओं ने श्रमण भगवान् महावीर एवं गौतमादि श्रमण निर्ग्रन्थों के समक्ष १. स्वस्तिक, २. श्रीवत्स, ३. नन्दावर्त, ४. वर्धमानक, ५. भद्रासन, ६ . कलश, ७. मत्स्य और ८. दर्पण, इन आठ मंगल द्रव्यों का आकार रूप दिव्य नाट्य-अभिनय करके दिखलाया । ८६— तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य सयमेव समोसरणं करेंति करित्ता तं चेव भाणियव्वं जाव दिव्वे देवरमणे पवत्ते या वि होत्था । ८६— तत्पश्चात् अर्थात् मंगलद्रव्याकार नाट्य-अभिनय सम्पन्न करने के पश्चात् दूसरी नाट्यविधि दिखाने के लिए वे देवकुमार और देवकुमारियां एकत्रित हुईं और एकत्रित होने से लेकर दिव्य देवरमण में प्रवृत्त होने पर्यन्त की पूर्वोक्त समस्त वक्तव्यता का यहां वर्णन करना चाहिए । विवेचन — 'तं चेव भाणियव्वं' पद से यहां पूर्व में किये गये वर्णन की पुनरावृत्ति करने का संकेत किया है। उस वर्णन का सारांश इस प्रकार है सूर्याभदेव द्वारा आज्ञापित वे देवकुमार और देवकुमारियां श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार करके गौतम आदि श्रमण निर्ग्रन्थों के समक्ष आये, उनके सामने एक साथ नीचे नमे फिर मस्तक ऊंचा कर सीधे खड़े हुए। इसी प्रकार सामूहिक रूप में नमन आदि किया। तत्पश्चात् अपने-अपने नृत्य गान के उपकरण और वाद्यों को लेकर वे सभी गाने, नाचने एवं नाट्य-अभिनय करने में प्रवृत्त हो गये । ८७— तए णं बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स आवडपच्चावड-सेढिपसेढि-सोत्थिय-पूसमाणग- वद्धमाणग-मच्छण्डमगरंड - जार-मार - फुल्लावलि - पउमपत्तसागर-तरंग - वसंतलता - पउमलयभत्तिचित्तं णाम दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति । ८७— तदनन्तर उन देवकुमारों और देवकुमारियों ने श्रमण भगवान् महावीर एवं गौतमादि श्रमण निर्ग्रन्थों के सामने आवर्त, प्रत्यावर्त, श्रेणि, प्रश्रेणि, स्वस्तिक, सौवस्तिक, पुष्य, माणवक, वर्धमानक, मत्स्याण्ड, मकराण्डक,
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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