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________________ राजप्रश्नीयसूत्र एवं और दूसरी बहुत सी मनोरम छोटी-बड़ी अनेक प्रकार की रंगबिरंगी पचरंगी ध्वजाओं से परिमंडित, वायु वेग से फहराती हुई विजयवैजयंती पताका, छत्रातिछत्र से युक्त, आकाशमंडल को स्पर्श करने वाला हजार योजन ऊंचा एक बहुत बड़ा इन्द्रध्वज नामक ध्वज अनुक्रम से उसके आगे चला। ६२– तयणंतरं च णं सुरूवणेवत्थपरिकच्छिया सुसज्जा सव्वालंकारभूसिया महया भडचडगरपहकारेणं पंच अणीयाहिवईओ पुरतो अहाणुपुव्वीए संपत्थिया । ६२– इन्द्रध्वज के अनन्तर सुन्दर वेषभूषा से सुसज्जित, समस्त आभूषण-अलंकारों से विभूषित और अत्यन्त प्रभावशाली सुभटों के समुदायों को साथ लेकर पांच सेनापति' अनुक्रम से आगे चले। ६३- तयणंतरं च णं बहवे आभिओगिया देवा देवीओ य सएहिं सएहिं रूवेहिं, सएहिं सएहिं विसेसेहिं सएहिं सएहिं विंदेहि, सएहिं सएहिं णेज्जाएहिं, सएहिं सएहिं णेवत्थेहिं पुरतो अहाणुपुव्वीए संपत्थिया । ६३– तदनन्तर बहुत से आभियोगिक देव और देवियां अपनी-अपनी योग्य-विशिष्ट वेशभूषाओं और विशेषतादर्शक अपने-अपने प्रतीक चिह्नों से सजधजकर अपने-अपने परिकर, अपने-अपने नेजा और अपने-अपने कार्यों के लिए कार्योपयोगी उपकरणों-साधनों को साथ लेकर अनुक्रम से आगे चले। ६४- तयणंतरं च णं सूरियाभविमाणवासिणो बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य सव्वड्डीए जाव (सव्वजुईए, सव्वबलेणं, सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूईए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वपुष्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सव्व-तुडिय-सद्द-सण्णिणाएणं महया इड्डीए, महया जुईए, महया बलेणं, महया समुदएणं महया वर-तुडिय-जमगसमग-प्पवाइएणं संख-पणवपटह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरय-मुइंग-दुन्दुभिनिग्घोसनाइय) रवेणं सूरियाभं देवं पुरतो पासतो य मग्गतो य समणुगच्छंति ।। ६४– तत्पश्चात् सबसे अंत में उस सूर्याभ विमान में रहने वाले बहुत से वैमानिक देव और देवियां अपनी अपनी समस्त ऋद्धि से, यावत् (सर्व द्युति, बल-सेना, परिवार रूप समुदाय, आदर-सन्मान, शृंगार-विभूषा, विभूति-ऐश्वर्य, संभ्रम (भक्तिजन्य उत्सुकता) सर्वप्रकार के पुष्पों, गंध, माला, अलंकारों, सर्व प्रकार के वाद्यों की मधुर ध्वनि तथा अपनी विशिष्ट ऋद्धि, महान् द्युति, महान् सेना, महान् समुदाय तथा एक साथ बजते हुए अनेक वाद्यों की मधुर ध्वनि एवं शंख, पणव, पटह-ढोल, भेरी, झल्लरी, खरमुखी, हुडुक्क, मुरज-मृदंग और दुन्दुभिनिनाद की) प्रतिध्वनि से शोभित होते हुए उस सूर्याभदेव के आगे-पीछे, आजू-बाजू में साथ-साथ चले। सूर्याभदेव का आमलकप्पा नगरी की ओर प्रस्थान ६५- तए णं से सूरियाभे देवे तेणं पंचाणीयपरिक्खित्तेणं वइरामयवट्टलट्ठसंठिएण जाव' जोयणसहस्समूसिएणं महतिमहालतेणं महिंदज्झएणं पुरतो कड्डिजमाणेणं चउहिं सामाणियसहस्सेहिं १. अश्व, गज, रथ, पदाति और वृषभ सेनाओं के अधिपति । २. देखें सूत्र संख्या ६१
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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