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________________ के संयोजक और प्रधान सम्पादन हैं—युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी म.। वे श्रमणसंघ के भावी आचार्य हैं। आगमों को अधुनातन भाषा में प्रकाशित करने का उनका दृढ़ संकल्प प्रशंसनीय है। उन्होंने आगमों का कार्य हाथ में लिया पर इतने स्वल्प समय में प्रश्नव्याकरण को छोड़कर शेष दस अंग प्रायः प्रकाशित हो गये हैं। भगवती का भी प्रथम भाग प्रकाशित हो चुका है। अन्य भाग भी प्रकाशन के पथ पर द्रुत गति से कदम बढ़ा रहे हैं। औपपातिक और नन्दीसूत्र के बाद राजप्रश्नीय का प्रकाशन हो रहा है। अन्य आगम भी प्रेस के चक्के पर चढ़ चुके हैं। आगम प्रकाशन का यह कार्य राकेट की गति से हो रहा है। यदि यही गति रही तो एक-डेढ वर्ष में बत्तीस आगमों का प्रकाशन समिति के द्वारा पूर्ण रूप से सम्पन्न हो जायेगा। वस्तुतः यह भगीरथ कार्य युवाचार्य श्री की कीर्ति को अमर बनाने वाला है। राजप्रश्नीय के इस संस्करण की अपनी मौलिक विशेषता है शुद्ध मूलपाठ, भावार्थ और संक्षिप्त विवेचन। विषय गम्भीर होने पर भी प्रस्तुतीकरण सरल है। पूर्व के अन्य संस्करणों की अपेक्षा यह संस्करण अधिक आकर्षक है। इसके सम्पादक हैं—वाणीभूषण पं. श्री रतनमुनिजी म., जिन्होंने निष्ठा के साथ इसका सम्पादन किया है। साथ ही पं. शोभाचन्द्रजी भारिल्ल का अथक श्रम भी इसमें जुड़ा हुआ है। वृद्धावस्था होने पर भी वे जो श्रम कर रहे हैं, वह श्रम नींव की ईंट के रूप में आगममाला के साथ जुड़ा हुआ है। यदि वे तन, मन के साथ श्रुतसेवा के इस महायज्ञ ' में जुड़े नहीं होते तो यह कार्य इस रूप में सम्पन्न शायद ही हो पाता। . राजप्रश्नीय पर मैं बहुत विस्तार के साथ प्रस्तावना लिखना चाहता था। आत्मवाद के गम्भीर विषय को विभिन्न दर्शनों के आलोक में प्रस्तुत करना चाहता था पर मेरा स्वास्थ्य लम्बे समय से अस्वस्थ-सा रहा, जिसके कारण चाहते हुए भी लिख नहीं पाया। तथापि संक्षेप में मैंने आगमगत विषयों पर चिन्तन किया है। तुलनात्मक और समन्वयात्मक चिन्तन करने की दृष्टि मुझे अपने श्रद्धेय सद्गुरुवर्य, राजस्थानकेसरी अध्यात्मयोगी, उपाध्याय श्री पुष्करमुनि जी म. से प्राप्त हुई, जो युवाचार्य श्री के स्नेही साथी हैं। उनकी अपार कृपा से ही मैं प्रस्तावना लिखने में सक्षम हो सका हूं। वर्तमान युग में मानव भौतिकता की ओर अपने कदम बढ़ा रहा है, जिससे उसे शान्ति के स्थान पर अशान्ति प्राप्त हो रही है। ऐसी विषम स्थिति में यह आगम अध्यात्मवाद की पवित्र प्रेरणा देगा, उसे शान्ति की सच्ची राह बतायेगा। उसकी तनावपर्ण स्थिति को समाप्त कर जीवन में धर्म की सुरीली स्वर-लहरियां झबूत करेगा, इसी आशा के साथ विरमामि। धन तेरस —देवेन्द्रमुनि शास्त्री दि. १३ नवम्बर, '८२ जैन स्थानक सिंहपोल, जोधपुर (राज.) ** [३६]
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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