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घन शब्द के अन्तर्गत ताल, कंसताल, लत्तिय, गोहिय, मक्करीय, कच्छभी, महत्ती, सणालिया और वालिया आदि वाद्य घन में सम्मिलित किए गए हैं।
सुषिर — फूंक से बजाये जाने वाले वाद्य शुषिर हैं। भरतमुनि ने शुषिर के अन्तर्गत वंश को अंगभूत तथा शंख, डिक्किणी आदि वाद्यों को प्रत्यंग माना है ।
इस प्रकार प्राचीन साहित्य में वाद्यों के सम्बन्ध में विविध रूप से चर्चायें हैं । हमने संक्षेप में ही यहां कुछ उल्लेख किया है।
नाटक : एक चिन्तन
सूर्याभ देव ने देव कुमारों और देव कुमारियों को आदेश दिया कि वे नाट्यविधि का प्रदर्शन करें। वे सभी एक साथ नीचे झुके और एक साथ मस्तक ऊपर उठाकर उन्होंने अपना नृत्य और गीत प्रारम्भ किया। उसके पश्चात् बत्ती प्रकार की नाट्यविधियां प्रदर्शित कीं
१. स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त, वर्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्य और दर्पण के दिव्य अभिनय – आचार्य मलयगिरि के अनुसार इन नाट्यविधियों का उल्लेख चतुर्दश पूर्वों के अन्तर्गत नाट्यविधि नामक प्राभृत में था, पर वह प्राभृत वर्तमान में विच्छिन्न हो गया है। महाभारत में स्वस्तिक, वर्धमान और नन्द्यावर्त का उल्लेख है। अंगुत्तरनिकाय में नन्द्यावर्त का अर्थ मछली किया है । १८ भरत के नाट्यशास्त्र में स्वस्तिक को चतुर्थ और वर्धमानक को तेरहवां नाट्य बताया है । प्रस्तुत अभिनय में भरत के नाट्यशास्त्र में उल्लिखित आंगिक अभिनय के द्वारा नाटक करने वाले, स्वस्तिक आदि आठ मंगलों का आकार बनाकर खड़े हो जाते और फिर हाथ आदि के द्वारा उस आकार का प्रदर्शन करते तथा वाचिक अभिनय के द्वारा मंगल शब्द का उच्चारण करते। जिससे दर्शकों के अन्तर्हृदय में उस मंगल के प्रति रतिभाव समुत्पन्न होता । ९
२. आवर्त, प्रत्यावर्त, श्रेणी, प्रश्रेणी, स्वस्तिक, सौवस्तिक, पुष्यमानव, वर्धमानक, (कंधे पर बैठे हुए पुरुष का अभिनय), मत्स्याण्डक, मकराण्डक, १ जार, मार७२, पुष्पावली, पद्मपत्र, सागरतरंग, बसन्तलता, पद्मलता के चित्रों का अभिनय ।
३ : ईहामृग, वृषभ, घोड़ा, नर, मगर, पक्षी, सर्प, किन्नर, रुरु, शरभ, चमर, कुंजर, ४ वनलता, पद्मलता के चित्रों का अभिनय ।
निसीहज्झयणं—–१७ / १३९ राजप्रश्नीय टीका, पृष्ठ १३६
६५.
६६.
६७.
महाभारत ७, ८२, २०
६८. डिक्शनरी ऑफ पालि प्रॉपर नेम्स, भाग-२, पृष्ठ- २९
६९. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका ५, पृष्ठ ४१४
७०.
७१.
७२.
७३.
७४.
भ्रमद्भ्रमरिकादानैर्नर्त्तनम् आवर्त:, तद्विपरीतः प्रत्यावर्तः ।
भरत के नाट्यशास्त्र में मकर का वर्णन है।
सम्यग्मणिलक्षणवेदिनौ लोकाद्वेदितव्यौ !
भारत के नाट्यशास्त्र में पद्म ।
भरत के नाट्यशास्त्र में गजदंत ।
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-मलालसेकर
— जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका ५, पृष्ठ ४१४
—जीवाजीवाभिगम टीका, पृष्ठ १८९