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________________ प्रदेशी की प्रतिक्रिया एवं श्रावकधर्म-ग्रहण १९५ पंडुरे पभाए रत्तासोग-किंसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागरनलिणिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते अंतेउरपरियालसद्धिं संपरिवुडस्स देवाणुप्पिए वंदित्तए नमंसित्तए एतमटुं भुज्जो-भुज्जो सम्मं विणएणं खामित्तए-त्ति-कटु जामेव दिसिं पाउब्भूते तामेव दिसिं पडिगए । ___तए णं से पएसी राया कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव तेयसा जलते हट्टतुट्ठ-जावहियए जहेव कूणिए' तहेव निग्गच्छइ अंतेउरपरियालसद्धिं संपरिवुडे पंचविहेणं अभिगमेणं वंदइ नमंसइ एयमटुं भुज्जो भुज्जो सम्मं विणएणं खामेइ । २७०– केशी कुमारश्रमण के इस संकेत को सुनकर प्रत्युत्तर में प्रदेशी राजा ने केशी कुमारश्रमण से यह निवेदन किया हे भदन्त! आपका कथन योग्य है किन्तु मेरा इस प्रकार यह आध्यात्मिक आन्तरिक यावत् विचार—संकल्प है कि अभी तक आप देवानुप्रिय के प्रति मैंने जो प्रतिकूल यावत् व्यवहार किया है, उसके लिए आगामी कल, रात्रि के प्रभात रूप में परिवर्तित होने, उत्पलों और कमनीय कमलों के उन्मीलित और विकसित होने, प्रभात के पांडुर (पीलाश लिए श्वेत वर्ण का) होने, रक्ताशोक, पलाशपुष्प, शुकमुख (तोते की चोंच), गुंजाफल के अर्धभाग जैसे लाल, सरोवर में स्थित कमलिनीकुलों के विकासक सूर्य का उदय होने एवं जाज्वल्यमान तेज सहित सहस्ररश्मि दिनकर के प्रकाशित होने पर अन्तःपुर-परिवार सहित आप देवानुप्रिय की वन्दना-नमस्कार करने और अवमानना रूप अपने अपराध की बारंबार विनयपूर्वक क्षमापना के लिए सेवा में उपस्थित होऊं। ऐसा निवेदन कर वह जिस ओर से आया था, उसी ओर लौट गया। दूसरे दिन जब रात्रि के प्रभात रूप में रूपान्तरित होने यावत् जाज्वल्यमान तेज सहित दिनकर के प्रकाशित होने पर प्रदेशी राजा हृष्ट-तुष्ट यावत् विकसितहृदय होता हुआ कोणिक राजा की तरह दर्शनार्थ निकला। उसने अन्तःपुर-परिवार आदि के साथ पांच प्रकार के अभिगमपूर्वक वन्दन-नमस्कार किया और यथाविधि विनयपूर्वक अपने प्रतिकूल आचरण के लिए वारंवार क्षमायाचना की। विवेचन- पांच अभिगमों के नाम इस प्रकार हैं१. सचित्त द्रव्यों (पुष्प, पान आदि) का त्याग।। २. अचित्त द्रव्यों (वस्त्र, आभूषण आदि) का अत्याग। ३. एक शाटिका (दुपट्टा) का उत्तरासंग करना। ४. दृष्टि पड़ते ही दोनों हाथ जोड़ना। ५. मन को एकाग्र करना। २७१– तए णं केसी कुमारसमणे पएसिस्स रण्णो सूरियकंतप्पमुहाणं देवीणं तीसे य महतिमहालियाए महच्चपरिसाए जाव धम्म परिकहेइ । तए णं से पएसी राया धम्मं सोच्चा निसम्म उट्ठाए उडेति, केसिकुमारसमणं वंदइ नमसइ जेणेव सेयविया नगरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए । - १. देखिए समिति द्वारा प्रकाशित औपपातिकसूत्र
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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