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राजप्रश्नीयसूत्र ___ से तेणटेणं पएसी एवं वुच्चइ —मा तुमं पएसी पच्छाणुताविए भविज्जासि, जहा व से पुरिसे अयभारिए ।
२६७– प्रदेशी राजा की बात सुनकर केशी कुमार श्रमण ने इस प्रकार कहा—प्रदेशी! तुम उस अयोहारक (लोहे के भार को ढोने वाले लोहवणिक्) की तरह पश्चात्ताप करने वाले मत होओ। अर्थात् जैसे अयोहारकलोहवणिक् पछताया उसी तरह तुम्हें भी अपनी कुलपरम्परागत अन्धश्रद्धा के कारण पछताना पड़ेगा।
प्रदेशी–भदन्त! वह अयोहारक कौन था और उसे क्यों पछताना पड़ा?
केशी कुमारश्रमण—प्रदेशी! कुछ अर्थ (धन) के अभिलाषी, अर्थ की गवेषणा करने वाले, अर्थ के लोभी, अर्थ की कांक्षा और अर्थ की लिप्सा वाले पुरुष अर्थ-गवेषणा करने (धनोपार्जन करने) के निमित्त विपुल परिमाण में बिक्री करने योग्य पदार्थों और साथ में खाने-पीने के लिए पुष्कल–पर्याप्त पाथेय (नाश्ता) लेकर निर्जन, हिंसक प्राणियों से व्याप्त और पार होने के लिए रास्ता न मिले, ऐसी एक बहुत बड़ी अटवी (वन) में जा पहुंचे।
जब वे लोग उस निर्जन अटवी में कुछ आगे बढ़े तो किसी स्थान पर उन्होंने इधर-उधर सारयुक्त लोहे से व्याप्त लम्बी-चौड़ी और गहरी एक विशाल लोहे की खान देखी। वहां लोहा खूब बिखरा पड़ा था। उस खान को देखकर हर्षित, संतुष्ट यावत् विकसितहृदय होकर उन्होंने आपस में एक दूसरे को बुलाया और कहा, यह सलाह कीदेवानुप्रियो! यह लोहा हमारे लिए इष्ट, प्रिय यावत् मनोज्ञ है, अतः देवानुप्रियो ! हमें इस लोहे के भार को बांध लेना चाहिए। इस विचार को एक दूसरे ने स्वीकार करके लोहे का भारा बांध लिया। बांधकर उसी अटवी में आगे चल दिये।
तत्पश्चात् आगे चलते-चलते वे लोग जब उस निर्जन यावत् अटवी में एक स्थान पर पहुंचे तब उन्होंने सीसे से भरी हुई एक विशाल सीसे की खान देखी, यावत् एक दूसरे को बुलाकर कहा हे देवानुप्रियो! हमें इस सीसे का संग्रह करना यावत् लाभदायक है। थोड़े से सीसे के बदले हम बहुत-सा लोहा ले सकते हैं। इसलिए देवानुप्रियो ! हमें इस लोहे के भार को छोड़कर सीसे का पोटला बांध लेना योग्य है। ऐसा कहकर आपस में एक दूसरे ने इस विचार को स्वीकार किया और लोहे को छोड़कर सीसे के भार को बांध लिया। किन्तु उनमें से एक व्यक्ति लोहे को छोड़कर सीसे के भार को बांधने के लिए तैयार नहीं हुआ।
तब दूसरे व्यक्तियों (साथियों) ने अपने उस साथी से कहा—देवानुप्रिय! हमें लोहे की अपेक्षा इस सीसे का संग्रह करना अधिक अच्छा है, यावत् हम इस थोड़े से सीसे से बहुत-सा लोहा प्राप्त कर सकते हैं। अतएव देवानुप्रिय ! इस लोहे को छोड़कर सीसे का भार बांध लो।
तब उस व्यक्ति ने कहा—देवानुप्रियो! मैं इस लोहे के भार को बहुत दूर से लादे चला आ रहा हूं। देवानुप्रियो ! मैंने इस लोहे को बहुत ही कसकर बांधा है। देवानुप्रियो ! मैंने इस लोहे को अशिथिल बंधन से बांधा है। देवानुप्रियो ! मैंने इस लोहे को अत्यधिक प्रगाढ़ बंधन से बांधा है। इसलिए मैं इस लोहे को छोड़कर सीसे के भार को नहीं बांध सकता हूं।
तब दूसरे व्यक्तियों ने उस व्यक्ति को अनुकूल-प्रतिकूल सभी तरह की आख्यापना (सामान्य रूप से प्रतिपादन करने वाली वाणी) से, प्रज्ञापना (विशेष रूप से प्रतिपादन करने वाली समझाने वाली—वाणी) से समझाया। लेकिन जब वे उस पुरुष को समझाने-बुझाने में समर्थ नहीं हुए तो अनुक्रम से आगे-आगे चलते गये और वहां-वहां