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राजप्रश्नीयसूत्र पहले साथी से इस प्रकार बोले हे देवानुप्रिय! तुम जड़ अनभिज्ञ, मूढ़ मूर्ख (विवेकहीन), अपंडित (प्रतिभारहित), निर्विज्ञान (निपुणतारहित) और अनुपदेशलब्ध (अशिक्षित) हो, जो तुमने काठ के टुकड़ों में आग देखनी चाही।
इसी प्रकार की तुम्हारी भी प्रवृत्ति देखकर मैंने यह कहा—हे प्रदेशी ! तुम इस तुच्छ कठियारे से भी अधिक मूढ़ हो कि शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके जीव को देखना चाहते हो।
२६०- तए णं पएसी राया केसिकुमारसमणं एवं वयासी
जुत्तए णं भंते ! तुब्भं इय छयाणं दक्खाणं बुद्धाणं कुसलाणं महामईणं विणीयाणं विण्णाणपत्ताणं उवएसलद्धाणं अहं इमीसाए महालियाए महच्च परिसाए माझे उच्चावएहिं आउसेहिं आउसित्तए ? उच्चावयाहि उद्धंसणाहिं उद्धंसित्तए ? एवं निब्भंछणाहिं निब्भंछणित्तए ? निच्छोडणाहिं निच्छोडत्तए ?
२६०– कुमार श्रमण केशीस्वामी की उक्त बात (उदाहरण) को सुनकर प्रदेशी राजा ने केशीस्वामी से कहा—भंते! आप जैसे छेक–अवसरज्ञ, दक्ष–चतुर, बुद्ध तत्त्वज्ञ, कुशल कर्तव्याकर्तव्य के निर्णायक, बुद्धिमान्, विनीत —विनयशील, विशिष्ट ज्ञानी, सत्-असत् के विवेक से संपन्न (हेयोपादेय की परीक्षा करने वाले), उपदेशलब्धगुरु से शिक्षा प्राप्त पुरुष का इस अति विशाल परिषद् के बीच मेरे लिए इस प्रकार के निष्ठुर—आक्रोशपूर्ण शब्दों का प्रयोग करना, अनादरसूचक शब्दों से मेरी भर्त्सना करना, अनेक प्रकार के अवहेलना भरे शब्दों से मुझे प्रताडित करना, धमकाना क्या उचित है ?
२६१- तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासीजाणासि णं तुमं पएसी ! कति परिसाओ पण्णत्ताओ ?
जाणामि, चत्तारि परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा–खत्तियपरिसा, गाहावइपरिसा, माहणपरिसा, इसिपरिसा ।
जाणासि णं तुमं पएसी राया ! एयासिं चउण्हं परिसाणं कस्स का दंडणीई पण्णत्ता ?
हंता ! जाणामि । जे णं खत्तियपरिसाए अवरज्झइ से णं हत्थच्छिण्णए वा, पायच्छिण्णए वा, सीसच्छिण्णए वा, सूलाइए वा एगाहच्चे कूडाहच्चे जीवियाओ ववरोविज्जइ ।
जे णं गाहावइपरिसाए अवरज्झइ से णं तएण वा, वेढेण वा, पलालेण वा, वेढेत्ता अगणिकाएणं झामिज्जइ ।
___ जे णं माहणपरिसाए अवरज्झइ से णं अणिवाहिं अकंताहिं जाव अमणामाहिं वग्गूहिं उवालंभित्ता कुंडियालंछणए वा सूणगलंछणए वा कीरइ, निव्विसए वा आणविज्जइ ।
जे णं इसिपरिसाए अवरज्झइ से णं णाइअणिट्ठाहिं जाव णाइअमणामाहिं वग्गूहिं उवालब्भइ । ___ एवं च ताव पएसी ! तुमं जाणासि तहा वि णं तुमं ममं वामं वामेणं, दंडं दंडेणं, पडिकूलं पडिकूलेणं, पडिलोमं पडिलोमेणं, विविच्चासं विविच्चासेणं वट्टसि ।