SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वों का परिज्ञान । १० जैसे सूत्र में माला के मनके पिरोये हुए होते हैं उसी प्रकार जिसमें अनेक प्रकार के अर्थ ओत-प्रोत होते हैं, वह सूत्र है। जिसके द्वारा अर्थ सूचित होता है वह सूत्र है । जैसे— प्रसुप्त मानव के पास यदि कोई वार्तालाप करता है पर निद्राधीन होने के कारण वह वार्तालाप के भाव से अपरिचित रहता है, वैसे ही बिना व्याख्या पढ़े जिसका बोध न हो, वह सूत्र है । अपर शब्दों में यों कह सकते हैं— जिसके द्वारा अर्थ जाना जाय अथवा जिसके आश्रय से अर्थ का स्मरण किया जाय या अर्थ जिसके साथ अनुस्यूत हों, वह सूत्र है । ११ इस प्रकार श्रुत या सूत्र का स्वाध्याय करना, श्रुत के द्वारा जीवादि तत्त्वों और पदार्थों का यथार्थ स्वरूप जानना श्रुतधर्म है। श्रुतधर्म के भेद श्रुतधर्म के भी दो प्रकार हैं— सूत्ररूप श्रुतधर्म और अर्थरूप श्रुतधर्म ।२ अनुयोगद्वार सूत्र में श्रुत के द्रव्यश्रुत और भावश्रुत ये दो प्रकार बताये हैं। जो पत्र या पुस्तक पर लिखा हुआ है वह 'द्रव्यश्रुत' है और जिसे पढ़ने पर साधक उपयोगयुक्त होता है वह 'भावश्रुत' है। श्रुतज्ञान का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए कहा गया है— जैसे सूत्र धागा पिरोई हुई सूई गुम हो जाने पर भी पुनः मिल जाती है, क्योंकि धागा उसके साथ है। वैसे ही सूत्रज्ञान रूप धागे से जुड़ा हुआ व्यक्ति आत्मज्ञान से वंचित नहीं होता । आत्मज्ञान युक्त होने से वह संसार में परिभ्रमण नहीं करता । नदीसूत्र में श्रुत के दो प्रकार बताये हैं—– सम्यक् श्रुत और मिथ्या श्रुत। वहां पर सम्यक् श्रुत और मिथ्या श्रुत की सूची भी दी है और अन्त में स्पष्ट रूप से लिखा है "सम्यक् श्रुत कहलाने वाले शास्त्र भी मिथ्यादृष्टि के हाथों में पड़कर मिथ्यात्व बुद्धि से परिगृहीत होने के कारण मिथ्याश्रुत बन जाते हैं। इसके विपरीत मिथ्या श्रुत कहलाने वाले शास्त्र सम्यग्दृष्टि के हाथों में पड़कर सम्यक्त्व से परिगृहीत होने के कारण सम्यक् श्रुत बन जाते हैं । १३ श्रुत के अक्षरश्रुत और अनक्षरश्रुत, संज्ञीश्रुत और असंज्ञीश्रुत आदि चौदह भेद किये गये हैं । उनमें सम्यक् श्रुत वह है जो वीतरागप्ररूपित है । सर्वज्ञ, सर्वदर्शी तीर्थंकर भगवान् ने अपने आपको देखा एवं समूचे लोक को भी हस्तामलकवत् देखा। भगवान् ने सत्य का प्रतिपादन किया । उन्होंने बन्ध, बन्धहेतु, मोक्ष और मोक्षहेतु का स्वरूप प्रकट किया। भगवान् की वह पावन वाणी आगम बन गई । इन्द्रभूति औतम आदि प्रमुख शिष्यों ने उस वाणी को सूत्र रूप में गूंथा, जिससे आगम के सूत्रागम और अर्थागम ये दो विभाग हुए। भगवान् के प्रकीर्ण उपदेश को 'अर्थागम' और उसके आधार पर की गई सूत्ररचना 'सूत्रागम' कहा गया। यह आगमसाहित्य आचार्यों के लिए महान् निधि थी । १०. दुर्गतौ प्रपततो जीवान् रुणद्धि, सुगतौ च तान् धारयतीति धर्मः । श्रुतं द्वादशांग तदेव धर्मः श्रुतधर्मः । —स्थानांगवृत्ति ११. सूत्र्यन्ते सूच्यन्ते वाऽर्था अनेनेति सूत्रम् । सुस्थितत्वेन व्यापित्वेन च सुष्ठुक्तत्वाद् वा सुक्तं, सुप्तमिव वा सुप्तम् । सिंचति क्षरति यस्मादर्थं तस्मात् सूत्रं निरुक्तविधिना वा सूचयति श्रवति श्रूयतेः स्मर्यते वा येनार्थः । — स्थानांगवृत्ति स्थानांग, स्था. २ १२. सुयधम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा ——– सुत्तसुयधम्मे चेव अत्थसुयधम्मे चेव । १३. एआई मिच्छादिट्ठिस्स मिच्छत्तपरिग्गहियाई मिच्छासुयं । एआई चे सम्मदिट्ठिस्स सम्मत्तपरिग्गहियाई सम्मसुयं ॥ [१५] — नन्दीसूत्र - श्रुतज्ञान प्रकरण
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy