________________
अभिषेकानंतर सूर्याभदेव का अलंकरण
सूरियाभविमाणवासीणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं जाव (पोरेवच्चं - सामित्तं-भट्टित्तं-महत्तरगतं-आणाईसरसेणावच्चं ) महया महयाहयनट्ट० कारेमाणे पालेमाणे विहराहि त्ति कट्टु जय जय सद्दं पउंजंति ।
११३
१९३ – तत्पश्चात् चार हजार सामानिक देवों यावत् सपरिवार चार अग्रमहिषियों, तीन परिषदाओं, सात अनीकाधिपतियों, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों तथा दूसरे भी बहुत से सूर्याभ राजधानी में वास करने वाले देवों और देवियों ने सूर्याभदेव को महान् महिमाशाली इन्द्राभिषेक से अभिषिक्त किया। अभिषेक करके प्रत्येक ने दोनों हाथ जोड़कर आवर्तपूर्वक मस्तक पर अंजलि करके इस प्रकार कहा
हे नन्द ! तुम्हारी जय हो, जय हो ! हे भद्र! तुम्हारी जय हो, जय हो ! तुम्हारा भद्र – कल्याण हो ! हे जगदानन्दकारक! तुम्हारी बारंबार जय हो ! तुम न जीते हुओं को जीतो और विजितों (जीते हुओं) का पालन करो, जितों—शिष्ट आचार वालों के मध्य में निवास करो। देवों में इन्द्र के समान, ताराओं में चन्द्र के समान, असुरों में चमरेन्द्र के समान, नागों में धरणेन्द्र के समान, मनुष्यों में भरत चक्रवर्ती के समान, अनेक पल्योपमों तक, अनेक सागरोपमों तक, अनेक-अनेक पल्योपमों-सागरोपमों तक, चार हजार सामानिक देवों यावत् सोलह हजार आत्मरक्ष देवों तथा सूर्याभ विमान और सूर्याभ विमानवासी अन्य बहुत से देवों और देवियों का बहुत-बहुत अतिशय रूप से आधिपत्य (शासन) यावत् (पुरोवर्तित्व), (प्रमुखत्व) भर्तृत्व, ( पोषकत्व) महत्तरकत्व एवं आज्ञेश्वरत्व, सेनापतित्व करते हुए पालन करते हुए विचरण करो ।
इस प्रकार कहकर पुनः जय जयकार किया ।
अभिषेकानंतर सूर्याभदेव का अलंकरण
१९४- तए णं से सूरियाभे देवे महया महया इंदाभिसेगेणं अभिसित्ते समाणे अभिसेयसभाओ पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छति, निग्गच्छित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अलंकारियसभं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे करेमाणे अलंकारियसभं पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति सीहासणवरगते पुरत्थाभि
सन्निन् ।
१९४— अतिशय महिमाशाली इन्द्राभिषेक से अभिषिक्त होने के पश्चात् सूर्याभदेव अभिषेकसभा के पूर्वदिशावर्ती द्वार से बाहर निकला, निकलकर जहां अलंकार-सभा वहां आया। आकर अलंकार - सभा की अनुप्रदक्षिणा करके पूर्व दिशा के द्वार से अलंकार-सभा में प्रविष्ट हुआ। प्रविष्ट होकर जहां सिंहासन था, वहां आया और आकार पूर्व की ओर मुख करके उस श्रेष्ठ सिंहासन पर आरूढ हुआ।
१९५— तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववन्नगा अलंकारियभंडे उवट्टवेंति । तणं से सूरिया देवे तप्पढमयाए पम्हलसुमालाए सुरभीए गंधकासाईए गायाइं लूहेति लूहिता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाइं अणुलिंपति, अणुलिंपित्ता नासानीसासवायवोज्झं चक्खुहरं वन्नफरिसजुत्तं हयलालापेसवातिरेगं धवलं कणगखचियन्तकम्मं आगासफालियसमप्पभं दिव्वं देवदूसजुयलं नियंसेति, नियंसेत्ता हारं पिणद्धेति, पिणद्धित्ता अद्धहारं पिणद्धेइ, एगावलिं पिणद्धेति,