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________________ ११० राजप्रश्नीयसूत्र गोसीससरसरत्तचंदणदद्दरदिण्णपंचंगुलितलं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं उवचियचंदणकलसं चंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं पंचवण्णसुरभिमुक्कपुष्फपुंजोवयारकलियं करेंति, अप्पेगतिया सूरियाभं विमाणं कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कधूवमघमघंतगंधुद्ध्याभिराम करेंति, अप्पेगइतया देवा सूरियाभं विमाणं सुगंधगंधियं गंधवटिभूतं करेंति । अप्पेगतिया देवा हिरण्णवासं वासंति, सुवण्णवासं वासंति, रययवासं वासंति, वइरवासं० पुष्फवासं० फलवासं० मल्लवासं० गंधवासं० चुण्णवासं० आभरणवासं० वासंति । अप्पेगतिया देवा हिरण्णविहिं भाएंति, एवं सुवन्नविहिं भाएंति रयणविहि, पुष्फविहिं, फलविहिं, मल्लविहिं चुण्णविहिं वत्थविहिं गंधविहि, तत्थ अप्पेगतिया देवा आभरणविहिं भाएंति । . अप्पेगतिया चउव्विहं वाइत्तं वाइंति-ततं-विततं-घणं-झुसिरं, अप्पेगइया देवा चउव्विहं गेयं गायंति तं॰—उक्खित्तायं-पायत्तायं-मंदायं-रोइतावसाणं, अप्पेगतिया देवा दुयं नट्टविहिं उवदंसिति, अप्पेगतिया विलंबियणट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा दुतविलंबियं णट्टविहिं उवदंसेंति, एवं अप्पेगतिया अंचियं नट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा आरभटं, भसोलं, आरभटभसोलं उप्पायनिवायपवत्तं संकुचियपसारियं, रियारियं भंतसंभंतणामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगतिया देवा चउव्विहं अभिणयं अभिणयंति, तं जहा—दिलृतियं-पाडंतियं-सामंतोवणिवाइयंलोगअंतोमज्झावसाणियं । अप्पेगतिया देवा बुक्कारेंति, अप्पेगतिया देवा पीणेति, अप्पेगतिया लासेंति, अप्पेगतिया हक्कारेंति, अप्पेगतिया विणंति, तंडवेंति, अप्पेगतिया वगंति, अप्फोडेंति, अप्पेगतिया अप्फोडेंति, वग्गंति, अप्पे०२ तिवई छिंदंति, अप्पेगतिया हयहेसियं करेंति, अप्पेगतिया हत्थिगुलगुलाइयं करेंति, अप्पेगतिया रह-घणघणाइयं करेंति, अप्पेगतिया हयहेसिय-हत्थिगुलगुलाइय-रहघणघणाइयं करेंति, अप्पेगतिया उच्छलेंति, अप्पेगतिया पोच्छलेंति, अप्पेगतिया उक्किट्ठियं करेंति, अ० उच्छलेंति, पोच्छलेंति, अप्पेगतिया तिन्नि वि, अप्पेगतिया उवयंति, अप्पेगतिया उप्पयंति, अप्पेगतिया परिवयंति, अप्पेगतिया तिन्नि वि, अप्पेगइया सीहनायंति अप्पेगतिया दद्दरयं करेंति, अप्पेगतिया भूमिचवेडं दलयंति अप्पे० तिन्न वि, अप्पेगतिया गजंति, अप्पेगतिया विजुयायंति, अप्पेगइया वासं वासंति, अप्पेगतिया तिन्न वि करेंति, अप्पेगतिया जलंति अप्पेगतिया तवंति, अप्पेगतिया पतवेंति, अप्पेगतिया तिन्नि वि, अप्पेगतिया हक्कारेंति अप्पेगतिया थुक्कारेंति अप्पेगतिया धक्कारेंति, अप्पेगतिया साइं साइं नामाइं साहेति, अप्पेगतिया चत्तारि वि, अप्पेगइया देवा देवसन्निवायं १. वासंति' शब्द का सूचक है तथा भाएंति शब्द का भी संकेत किया गया है। संदर्भानुसार उस उस शब्द को ग्रहण करना चाहिए। अप्पे० शब्द 'अप्पेगतिया' का सूचक है।
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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