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अभिषेककालीन देवोल्लास
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औषधियों, सिद्धार्थकों (सरसों) और सरस गोशीर्ष चन्दन को लिया। लेकर जहां सौमनस वन था, वहां आये। आकर वहां से सर्व ऋतुओं के उत्तमोत्तम पुष्पों यावत् सर्व औषधियों, सिद्धार्थकों, सरस गोशीर्ष चन्दन और दिव्य पुष्पमालाओं को लिया, लेकर पांडुक वन में आये और वहां आकर सर्व ऋतुओं के सर्वोत्तम पुष्पों यावत् सर्व औषधियों, सिद्धार्थकों, सरस गोशीर्ष चन्दन, दिव्य पुष्पमालाओं, दर्दरमलय चन्दन की सुरभि गंध से सुगन्धित गंध - द्रव्यों को लिया ।
इन सब उत्तमोत्तम पदार्थों को लेकर वे सब आभियोगिक देव एक स्थान पर इकट्ठे हुए और फिर उत्कृष्ट दिव्यगति से यावत् जहां सौधर्म कल्प था और जहां सूर्याभविमान था, उसकी अभिषेक सभा थी और उसमें भी जहां सिंहासन पर बैठा सूर्याभदेव था, वहां आये। आकर दोनों हाथ जोड़ आवर्तपूर्वक मस्तक पर अंजलि करके सूर्याभदेव को 'जय हो विजय हो' शब्दों से बधाया और बधाई देकर उसके आगे महान् अर्थ वाली, महा मूल्यवान्, महान् पुरुषों के योग्य विपुल इन्द्राभिषेक की सामग्री उपस्थित की — रखी।
१९१ — तए णं तं सूरियाभं देवं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ, चत्तारि अग्गमहिसीओ सपरिवाराओ, तिन्नि परिसाओ, सत्त अणियाहिवइणो जाव अन्नेवि बहवे सूरियाभविमाणवासिणो देवा य देवीओ य तेहिं साभाविएहि य वेउव्विएहि य वरकमलपइट्ठाणेहि य सुरभिवरवारिपडिपुन्नेहिं चंदणकयचच्चिएहिं आविद्धकंठेगुणेहिं पउमुप्पलपिहाणेहिं सुकुमालकोमलकरपरिग्गहिएहिं अट्ठसहस्सेणं सोवन्नियाणं कलसाणं जाव अट्ठसहस्सेणं भोमिज्जाणं कलसाणं सव्वोदएहिं सव्वमट्टियाहिं सव्वतूयरेहिं जाव सव्वोसहिसिद्धत्थएहि य सव्विड्डीए जाव वाइएणं महया - महया इंदाभिसेएणं अभिसिंचंति ।
१९१ – तत्पश्चात्—–—–—अभिषेक की सामग्री आ जाने के बाद चार हजार सामानिक देवों, परिवार सहित चार अग्रमहिषियों, तीन परिषदाओं, सात अनीकाधिपतियों यावत् अन्य दूसरे बहुत से देवों देवियों ने उन स्वाभाविक एवं विक्रिया शक्ति से निष्पादित — बनाये गये श्रेष्ठ कमलपुष्पों पर संस्थापित, सुगंधित शुद्ध श्रेष्ठ जल से भरे हुए, चन्दन
लेप से चर्चित, पंचरंगे सूत - कलावे से आविद्ध बन्धे- लिपटे हुए कंठ वाले, पद्म (सूर्यविकासी कमलों) एवं उत्पल (चन्द्रविकासी कमलों) के ढक्कनों से ढके हुए, सुकुमाल कोमल हाथों से लिये गये और सभी पवित्र स्थानों
जल से भरे हुए एक हजार आठ स्वर्ण कलशों यावत् एक हजार आठ मिट्टी के कलशों, सब प्रकार की मृत्तिका एवं ऋतुओं के पुष्पों, सभी काषायिक सुगन्धित द्रव्यों यावत् औषधियों और सिद्धार्थकों – सरसों से महान् ऋद्धि यावत् वाद्यघोषों पूर्वक सूर्याभदेव को अतीव गौरवशाली उच्चकोटि के इन्द्राभिषेक से अभिषिक्त किया । अभिषेककालीन देवोल्लास
१९२— तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स महया - महया इंदाभिसेए वट्टमाणे अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं नच्चोययं नातिमट्टियं पविरल - फुसियरेणुविणासणं दिव्वं सुरभिगंधोदगं वासं वासंति, अप्पेगतिया देवा हयरयं, नट्ठरयं, भट्ठरयं, उवसंतरयं, पसंतरयं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं मंचाइमंचकलियं करेंति, अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं णाणाविहरागोसियं झयपडागाइपडागमंडियं करेंति, अप्पेगतिया देवा सूरियाभं विमाणं लाउल्लोइमहियं,