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________________ सूर्याभदेव का अभिषेक-महोत्सव १०७ जेणेव महाहिमवंतरुप्पिवासहरपव्वया तेणेव उवागच्छन्ति तहेव, जेणेव महापउम-महापुंडरीयद्दहा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता दहोदगं गिण्हन्ति तहेव । जेणेव हरिवास-रम्मगवासाई जेणेव हरिकंत-नारिकंताओ महाणईओ, तेणेव उवागच्छंति तहेव, जेणेव गंधावाइमालवंतपरियाया वट्टवेयड्डपव्वया तेणेव तहेव । जेणेव णिसढ-णीलवंतवासधरपव्वया तहेव, तेणेव तिगिच्छ-केसरिबहाओ तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तहेव । जेणेव महाविदेहे वासे जेणेव सीता-सीतोदाओ महाणदीओ तेणेव तहेव । जेणेव सव्वचक्कवट्टिविजया जेणेव सव्वमागह-वरदाम पभासाइं तित्थाई तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता तित्थोदगं गेण्हंति, गेण्हित्ता सव्वंतरणईओ जेणेव सव्ववक्खारपव्वया तेणेव उवागच्छंति, सव्वतूयरे तहेव । जेणेव मंदरे पव्वते जेणेव भद्दसालवणे तेणेव उवागच्छंति सव्वतूयरे सव्वपुप्फे सव्यमल्ले सव्वोसहिसिद्धत्थए य गेण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव णंदणवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए य सरसगोसीसचंदणं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव सोमणसवणे तेणेव उवागच्छंति सव्वतूयरे जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए य सरसगोसीसचंदणं च दिव्वं च सुमणदामं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पंडगवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए च सरसं च गोसीसचंदणं च दिव्वं च सुमणदामं दद्दरमलयसुगंधियगंधे गिण्हंति । ___ गिण्हित्ता एगतो मिलायंति मिलाइत्ता ताए उक्किट्ठाए जाव जेणेव सोहम्मे कप्पे जेणेव सूरियाभे विमाणे जेणेव अभिसेयसभा जेणेव सूरियाभे देवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सूरियाभं देवं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं वद्धाविंति वद्धावित्ता तं महत्थं महग्धं परिहं विउलं इंदाभिसेयं उवट्ठवेंति । १९०- तत्पश्चात् उन आभियोगिक देवों ने सामानिक देवों की इस आज्ञा को सुनकर हर्षित यावत् विकसित हृदय होते हुए दोनों हाथ जोड़ आवर्तपूर्वक मस्तक पर अंजलि करके 'देव! बहुत अच्छा! ऐसा ही करेंगे' कहकर विनयपूर्वक आज्ञा-वचनों को स्वीकार किया। स्वीकार करके वे उत्तरपूर्व दिग्भाग में गये और उस उत्तरपूर्व दिग्भाग (ईशानकोण) में जाकर उन्होंने वैक्रिय समुद्घात किया। वैक्रिय समुद्घात करके संख्यात योजन का दण्ड बनाया यावत् पुनः दूसरी बार भी वैक्रिय समुद्घात करके एक हजार आठ स्वर्णकलशों की, एक हजार आठ रूप्यकलशों की, एक हजार आठ मणिमय कलशों की, एक हजार आठ स्वर्ण-रजतमय कलशों की, एक हजार आठ स्वर्ण-मणिमय कलशों की, एक हजार आठ रजत-मणिमय कलशों की, एक हजार आठ स्वर्ण-रूप्य-मणिमय कलशों की, एक हजार आठ भौमेय (मिट्टी के) कलशों की एवं इसी प्रकार एक हजार आठ—एक हजार आठ भृगारों, दर्पणों, थालों, पात्रियों, सुप्रतिष्ठानों वातकरकों, रत्नकरंडकों, पुष्पचंगेरिकाओं यावत् मयूरपिच्छचंगेरिकाओं, पुष्पपटलकों यावत् मयूरपिच्छपटलकों, सिंहासनों, छत्रों, चामरों, तेलसमुद्गकों यावत् अंजनसमुद्गकों, ध्वजाओं, धूपकडुच्छकों (धूपदानों) की विकुर्वणा (रचना) की।
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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