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________________ १०० राजप्रश्नीयसूत्र दीहवालाओ संखंककुंद-दगरय-अमतमहियफेणपुंजसन्निकासाओ धवलाओ चामराओ सलीलं धारेमाणीओ चिट्ठति । ____ तासि णं जिणपडिमाणं पुरतो दो-दो नागपडिमाओ जक्खपडिमाओ, भूयपडिमाओ, कुंडधारपडिमाओ सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव चिट्ठति । ____तासि णं जिणपडिमाणं पुरतो अट्ठसयं घंटाणं, अट्ठसयं चंदणकलसाणं, अट्ठसयं भिंगाराणं एवं आयंसाणं, थालाणं पाईणं सुपइट्ठाणं, मणोगुलियाणं वायकरगाणं, चित्तगराणं रयणकरंडगाणं, हयकंठाणं जाव' उसभकंठाणं, पुष्फचंगेरीणं जाव लोमहत्थचंगेरीणं, पुष्फपडलगाणं तेल्लसमुग्गाणं जाव' अंजणसमुग्गाणं अट्ठसयं झयाणं, अट्ठसयं धूवकडुच्छुयाणं संनिक्खित्तं चिट्ठति । सिद्धायतणस्स णं उवरि अटुट्ठ मंगलगा, झया छत्तातिछत्ता । १७९– उन जिन प्रतिमाओं में से प्रत्येक प्रतिमा के पीछे एक-एक छत्रधारक छत्र लिये खड़ी देवियों की प्रतिमायें हैं। वे छत्रधारक प्रतिमायें लीला करती हुई-सी भावभंगिमा पूर्वक हिम, रजत, कुन्दपुष्प और चन्द्रमा के समान प्रभा–कांतिवाले कोरंट पुष्पों की मालाओं से युक्त धवल-श्वेत आतपत्रों (छत्रों) को अपने-अपने हाथों में धारण किये हुए खड़ी हैं। प्रत्येक जिन-प्रतिमा के दोनों पार्श्व भागों बाजुओं में एक-एक चामरधारक प्रतिमायें हैं। वे चामर-धारक प्रतिमायें अपने अपने हाथों में विविध मणिरत्नों से रचित चित्रामों से युक्त चन्द्रकान्त, वज्र और वैडूर्य मणियों की डंडियों वाले, पतले रजत जैसे श्वेत लम्बे-लम्बे बालों वाले शंख, अंकरत्न, कुन्दपुष्प, जलकण, रजत और मन्थन किये हुए अमृत के फेनपुंज सदृश श्वेत-धवल चामरों को धारण करके लीलापूर्वक बींजती हुई-सी खड़ी हैं। उन जिन-प्रतिमाओं के आगे दो-दो नाग-प्रतिमायें, यक्षप्रतिमायें, भूतप्रतिमायें, कुंड (पात्रविशेष) धारकं प्रतिमायें खड़ी हैं। ये सभी प्रतिमायें सर्वात्मना रत्नमय, स्वच्छ निर्मल यावत् अनुपम शोभा से सम्पन्न हैं। ___ उन जिन-प्रतिमाओं के आगे एक सौ आठ–एक सौ आठ घंटा, चन्दनकलश, भंगार, दर्पण, थाल, पात्रियां, सुप्रतिष्ठान, मनोगुलिकायें, वातकरक, चित्रकरक, रत्नकरंडक, अश्वकंठ यावत् वृषभकंठ पुष्पचंगेरिकायें यावत् मयूरपिच्छ चंगेरिकायें, पुष्पषटलक, तेलसमुद्गक यावत् अंजनसमुद्गक, एक सौ आठ ध्वजायें, एक सौ आठ धूपकडुच्छुक (धूपदान) रखे हैं। सिद्धायतन का ऊपरी भाग स्वस्तिक आदि आठ-आठ मंगलों, ध्वजाओं और छत्रातिछत्रों से शोभायमान है। उपपात आदि सभाएं १८०- तस्स णं सिद्धायतणस्स उत्तरपुरस्थिमेणं एत्थ णं महेगा उववायसभा पण्णत्ता, जहा सभाए सुहम्माए तहेव जाव' मणिपेढिया अट्ठ जोयणाई, देवसयणिज्जं तहेव सयणिज्जवण्णओ, अट्ठट्ठ मंगलगा, झया, छत्तातिछत्ता । १८०- इस सिद्धायतन के ईशान कोण में एक विशाल श्रेष्ठ उपपात-सभा बनी हुई है। सुधर्मा-सभा के समान १, २, ३. –देखें सूत्र संख्या १३२ ४. देखें सूत्र संख्या १६३ से १७६
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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