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________________ राजप्रश्नीयसूत्र इनकी पादपीठ सोने की है, (चौखटे वैडूर्य मणि के और पिछले भाग वज्ररत्नों के बने हुए हैं) प्रतिबिम्ब मण्डल अंक रत्न के हैं और अनघिसे होने ( घिसे नहीं जाने) पर भी ये दर्पण अपनी स्वाभाविक निर्मल प्रभा से युक्त हैं। ये आयुष्मन् श्रमणो! चन्द्रमण्डल सरीखे ये निर्मल दर्पण ऊंचाई में कायार्ध (आधे शरीर) जितने बड़े-बड़े हैं। ७२ उन तोरणों के आगे वज्रमय नाभि वाले (वज्ररत्नों से निर्मित मध्य भाग वाले) दो-दो थाल रखे हैं । ये सभी थाल मूशल आदि से तीन बार छांटे गये, शोध गये, अतीव स्वच्छ निर्मल अखण्ड तंदुलों-चावलों से परिपूर्ण भरे हुए से प्रतिभासित होते हैं। हे आयुष्मन् श्रमणो ! ये थाल जम्बूनद-स्वर्णविशेष-से बने हुए यावत् अतिशय रमणीय और रथ के पहिये जितने विशाल गोल आकार के हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो पात्रियां रखी हैं। ये पात्रियां स्वच्छ निर्मल जल से भरी हैं और विविध प्रकार के सद्य-ताजे हरे फलों से भरी हुई-सी प्रतिभासित होती हैं । हे आयुष्मन् श्रमणो ! ये सभी पात्रियां रत्नमयी, निर्मल यावत् अतीव मनोहर हैं और इनका आकार बड़े-बड़े गोकलिंजरों (गाय को घास रखने के टोकरों) के समान गोल हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो सुप्रतिष्ठकपात्र विशेष (प्रसाधन मंजूषा - शृंगारदान) रखे हैं । प्रसाधन - शृंगार की साधन भूत औषधियों आदि से भरे हुए भांडों से सुशोभित हैं और सर्वात्मना रत्नों से बने हुए, निर्मल यावत् अतीव मनोहर हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो मनोगुलिकायें हैं। इन मनोहर मनोगुलिकाओं पर अनेक सोने और चांदी के पाटिये जड़े हुए हैं और उन सोने और चांदी के पाटियों पर वज्ररत्नमय नागदन्त लगे हैं एवं उन नागदन्तों के ऊपर वज्ररत्नमय छींके टंगे हैं। उन छींकों पर काले, नीले, लाल, पीले और सफेद सूत के जालीदार वस्त्र खण्ड से ढंके हुए वातकरक (जल से रहित, कोरे घड़े) रखे हैं। ये सभी वातकरक वज्ररत्नमय, स्वच्छ यावत् अतिशय सुन्दर हैं। उन तोरणों के आगे चित्रामों से युक्त दो-दो ( रत्नकरंडक – रत्नों के पिटारे) रखे हैं । जिस तरह चातुरंत चक्रवर्ती (षट्खंडाधिपति) राजा का वैडूर्यमणि से बना एवं स्फटिक मणि के पटल से आच्छादित अद्भुत-आश्चर्यजनक रत्नकरंडक अपनी प्रभा से उस प्रदेश को पूरी तरह से प्रकाशित, उद्योतित, तापित और प्रभासित करता है, उसी प्रकार ये रत्नकरंडक भी अपनी प्रभा — कांति से अपने निकटवर्ती प्रदेश को सर्वात्मना प्रकाशित, उद्योतित, तापित और प्रभासित करते हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो अश्वकंठ (कंठ पर्यन्त घोड़े की मुखाकृति जैसे रत्न - विशेष ) गजकंठ, नरकंठ, किन्नरकंठ, किंपुरुषकंठ, महोरगकंठ, गंधर्वकंठ और वृषभकंठ रखे हैं। ये सब अश्वकंठादिक सर्वथा रत्नमय, स्वच्छ-निर्मल यावत् असाधारण सुन्दर हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो पुष्प - चंगेरिकायें (फूलों से भरी छोटी-छोटी टोकरियां— डलियायें ) माल्यचंगेरिकायें, चूर्ण (सुगन्धित चूर्ण) चंगेरिकायें, गन्ध चंगेरिकायें, वस्त्र चंगेरिकायें, आभरण (आभूषण) चंगेरिकायें, सिद्धार्थ (सरसों) की चंगेरिकायें एवं लोमहस्त (मयूरपिच्छ) चंगेरिकायें रखी हैं। ये सभी रत्नों से बनी हुई, निर्मल यावत् प्रतिरूप अतीव मनोहर हैं। उन तोरणों के आगे दो-दो पुष्पपटलक (पिटारे) यावत् (माल्य, चूर्ण, गन्ध, वस्त्र, आभरण, सिद्धार्थ) तथा
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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