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________________ सूर्याभविमान के द्वारों का वर्णन सूर्याभविमान के द्वारों का वर्णन १२१– सूरियाभस्स णं विमाणस्स एगमेगाए बाहाए दारसहस्सं दारसहस्सं भवंतीति मक्खायं। __ ते णं दारा पंच जोयणसयाई उर्दू उच्चत्तेणं अड्डाइज्जाइं जोयणसयाई विक्खंभेणं तावइयं चेव पवेसेणं, सेया वरकणगथूभियागा ईहामिय-उसभ-तुरग-णर-मगर-विहग-वालग-किन्नर-रुरुसरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलयभत्ति-चित्ता, खंभुग्गयवरवयरवेइयापरिगयाभिरामा, विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ता विव, अच्चीसहस्समालणीया रूवगसहस्सकलिया, भिसमाणा भिब्भिसमाणा, चक्खुल्लोयणलेसा, सुहफासा सस्सिरीय रूवा । . वन्नो दाराणं तेसिं होइ-तं जहा—वइरामया णिम्मा, रिट्ठमया पइट्ठाणा, वेरुलियमया खंभा, जायरूवोवचिय-पवरपंचवन्न-मणिरयण-कोट्टिमतला, हंसगब्भमया एलुया, गोमेज्जमया इंदकीला, लोहियक्खमतीतो चेडाओ, जोईरसमया उत्तरंगा, लोहियक्खमईओ सूईओ, वयरामया संधी, नाणामणिमया समुग्गया, वयरामया अग्गला-अग्गलपासाया, रययामयाओ आवत्तणपेढियाओ । अंकुत्तरपासगा, निरंतरियघणकवाडा भित्तीसु चेव भित्तगुलिता छपन्न तिण्णि होंति गोमाणसिया तत्तिया णाणामणिरयणवालरूवगलीलट्ठिसालभंजियागा, वयरामया कूडा, रययामया उस्सेहा, सव्वतवणिज्जमया उल्लोया, णाणामणिरयणजालपंजर-मणिवंसगलोहियक्खपडिवंसगरययभोमा, अंकामया पक्खा-पक्खबाहाओ, जोईरसामया वंसा-वंसकवेल्लुयाओ, रययामईओ पट्टियाओ, जायरूवमईओ ओहाडणीओ, वइरामईओ उवरिपुञ्छणीओ, सव्वसेयरययामये छायणे, अंकमयकणगकडतवणिज्जथूभियागा, सेया संखतलविमलनिम्मलदधिघण-गोखीर-फेणरययणिगरप्पगासा तिलगरयणद्धचंदचित्ता' नाणामणिदामालंकिया, अंतो बहिं च सण्हा तवणिज्जबालुया पत्थडा, सुहफासा, सस्सिरीयरूवा, पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा । १२१– सूर्याभदेव के उस विमान की एक-एक बाजू में एक-एक हजार द्वार कहे गये हैं, अर्थात् उस विमान की पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण इन चारों दिशाओं में से प्रत्येक में एक-एक हजार द्वार हैं। ये प्रत्येक द्वार पांच-पांच सौ योजन ऊंचे हैं, अढ़ाई सौ योजन चौड़े हैं और इतना ही (अढ़ाई सौ योजन) इनका प्रवेशन—गमनागमन के लिए घुसने का स्थान है। ये सभी द्वार श्वेत वर्ण के हैं। उत्तम स्वर्णमयी स्तूपिकाओं शिखरों से सुशोभित हैं। उन पर ईहामृग, वृषभ, अश्व, नर, मकर, विहग, सर्प, किन्नर, रुरु, सरभअष्टापद चमर, हाथी, वनलता, पद्मलता आदि के चित्राम चित्रित हैं। स्तम्भों पर बनी हुई वज्र रत्नों की वेदिका से युक्त होने के कारण रमणीय दिखाई पड़ते हैं। समश्रेणी में स्थित विद्याधरों के युगल यन्त्र द्वारा चलते हुए-से दीख पड़ते हैं। वे द्वार हजारों किरणों से व्याप्त और हजारों रूपकों—चित्रों से युक्त होने से दीप्यमान और अतीव देदीप्यमान हैं। देखते ही दर्शकों के नयन उनमें चिपक जाते हैं। उनका स्पर्श सुखप्रद है। रूप शोभासम्पन्न है। ____ उन द्वारों का वर्ण-स्वरूपवर्णन इस प्रकार है पाठान्तर–सङ्घतल-विमल निम्मल-दहिघण-गोखीरफेण-रययनियरप्पगासद्धचन्दचित्ताई ।
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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